अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार के लिए इतना क्यों छटपटा रहे हैं? क्या उनके आग्रह पर ही पाकिस्तान ने उनके नाम की सिफारिश की है? क्या यह हास्यास्पद नहीं है कि जिस देश में आदर्श लोकतंत्र नहीं है और सेना ही सरकार को हांकती है, जिस देश को आतंकवाद की पनाहगाह माना जाता रहा है, जो देश पैसा लेकर किसी भी देश के खिलाफ ‘जेहाद’ करता रहा हो, जिस देश का रक्षा मंत्री कबूल करता हो कि हमने 30 साल में आतंकियों को पाला-पोसा है, उस देश ने नोबेल शांति पुरस्कार राष्ट्रपति ट्रंप को देने की सिफारिश की है? क्या राष्ट्रपति ट्रंप ने शांति, स्थिरता, मानवता, सौहार्द के लिए अमूल्य, अतुलनीय प्रयास किए हैं? यदि अमरीकी राष्ट्रपति खुद को नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य मानते हैं, तो मध्य-पूर्व में ही, ईरान के इर्द-गिर्द, अमरीका के 16 बड़े सैन्य अड्डे क्यों हैं? करीब 60 एकड़ क्षेत्र में घातक, संहारक विमान और 51, 000 से अधिक सैनिक क्यों तैनात हैं? क्या यह भी शांति के लिए बंदोबस्त किया गया है? कमोबेश अमरीका की सीमाएं वहां से काफी दूर हैं। यह अमरीका का साम्राज्यवाद ही है। बुनियादी तौर पर अमरीका हिंसक, युद्धोन्मादी, जनसंहारक देश है। राष्ट्रपति ट्रंप दावा कर रहे हैं कि उन्होंने रवांडा-कांगो के बीच समझौता करवा दिया है, जो सोमवार से प्रभावी हो जाएगा। मिस्र और इथियोपिया में शांति स्थापित कराई है। कोसोवो और सर्बिया के बीच युद्ध रुकवाया है। उन्होंने 15वीं बार यह दावा भी किया है कि भारत और पाकिस्तान के दरमियान हालिया संघर्ष को खत्म कराने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पाकिस्तान ने भी अपनी सिफारिश में लिखा है कि भारत के साथ संघर्ष में राष्ट्रपति ट्रंप का हस्तक्षेप एक वास्तविक शांतिदूत के रूप में उनकी भूमिका और बातचीत के माध्यम से संघर्ष के समाधान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। यह पूरी तरह गलत प्रमाणपत्र है। भारत ने पाकिस्तान के साथ कब बातचीत की थी? सैन्य अफसरों का संवाद युद्धविराम के लिए महज औपचारिकता था। नोबेल पुरस्कार कमेटी को ऐसी छद््म और फर्जी सिफारिश करना ही अपराध है।
यदि राष्ट्रपति ट्रंप वाकई ‘शांतिदूत’ हैं, तो फलस्तीन के गाजा में हमले अब भी जारी क्यों हैं? वह रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त क्यों नहीं करवा पाए? यह तो ट्रंप का मुख्य चुनावी मुद्दा था। इराक, सीरिया, लीबिया, लेबनान, यमन, अफगानिस्तान आदि देशों में अमरीका की युद्धबाज के तौर पर और खुद राष्ट्रपति ट्रंप की क्या भूमिका रही है? मौजूदा इजरायल-ईरान युद्ध को ही लें। बीते 10 दिन से भीषण हमले जारी हैं। करीब 700 मौतें हो चुकी हैं। ईरान के 12 से अधिक सैन्य जनरल मार दिए गए हैं। परमाणु वैज्ञानिक भी मारे गए हैं। कितनी इमारतें और प्रतिष्ठान खंडहर कर दिए गए हैं, उनका डाटा अभी उपलब्ध नहीं है। राष्ट्रपति ट्रंप कहते हैं कि वह इजरायल को युद्ध छोडऩे को नहीं कहेंगे। यह कौनसा शांतिकर्म है? ट्रंप बार-बार बयान बदल रहे हैं। अमरीका युद्ध में संलिप्त भी है और राष्ट्रपति ट्रंप ने दो सप्ताह के बाद कोई फैसला लेने की बात कही है। वह दावा करते रहे हैं कि ईरान परमाणु बम बना रहा है, जबकि उनकी सरकार में राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड ने कहा है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम 2003 में ही बंद करा दिया गया था, लिहाजा ईरान परमाणु बम कैसे बना सकता है? ट्रंप ने उनके बयान को खारिज कर दिया, तो तुलसी को भी सफाई देनी पड़ी। यदि ट्रंप वाकई ‘शांतिदूत’ हैं, तो उनका परमाणु बम से क्या लेना-देना? उनके प्रयास होने चाहिए कि युद्ध अविलंब खत्म हो, लेकिन अमरीका की नीयत के मद्देनजर रूस और चीन को चेतावनी देनी पड़ रही है कि अमरीका युद्ध में घुसने की कोशिश न करे। राष्ट्रपति ट्रंप का नोबेल पुरस्कार के लिए दर्द बार-बार बयां हो रहा है कि वह कितना, कुछ भी कर लें, लेकिन उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा। उनकी यह छटपटाहट इसलिए भी घनीभूत होती है, क्योंकि 2009 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। अब यह तय होना है कि ट्रंप पात्र हैं या नहीं?