मथुरा। भगवान श्रीकृष्ण की जन्म और लीला भूमि मथुरा को पड़ोसी राजघराना भरतपुर का प्रतिनिधित्व कभी रास नहीं आया है। राजनीतिक दृष्टि से भरतपुर राजघराने ने कई बार यहां से संसद में प्रतिनिधित्व करने के लिए भाग्य आजमाया, लेकिन मथुरा की जनता ने उन्हें नकार दिया। धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समानताएं होने के कारण भरतपुर ब्रज क्षेत्र का हिस्सा है। भगवान श्रीकृष्ण की कई लीला स्थली भरतपुर जनपद क्षे़त्र में हैं। यही कारण है कि ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा मथुरा के साथ राजस्थान में इसी जनपद क्षेत्र से गुजरती है। जाट बाहुल्य होने के कारण भी मथुरा और भरतपुर जनपद की जनता के बीच भी बेहतर तालमेल हैं।
इसके बावजूद कभी भी मथुरा की जनता ने भरतपुर राजघराने का प्रतिनिधित्व संसद के लिए स्वीकार नहीं किया। मथुरा से आजाद भारत में भरतपुर राजघराने के राजा बच्चू सिंह, कुंवर नटवर सिंह और राजा विश्वेंद्र सिंह ने राजनीतिक पारी खेलने की कोशिश की लेकिन यहां उन्हें हार का ही सामना करना पडा है। 1969 के लोकसभा उपचुनाव में मथुरा से भरतपुर रियासत से राजा बच्चू सिंह चुनाव मैदान में उतरे थे। उन्हें दिगंबर सिंह ने हरा दिया। इसके बाद एक बार फिर भरतपुर राजघराने से पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने भाग्य आजमाया, लेकिन उन्हें भी पराजय ही मिली। 1991 में राजा विश्वेन्द्र सिंह भी यहां आए, लेकिन इस बार भी परिणाम पुराना ही दोहराया गया। करीब डेढ़ लाख वोटों से वह हार गए।
मुरसान और अवागढ रियासत का प्रतिनिधित्व स्वीकारा
भरतपुर राजघराने के अलावा मुरसान रियासत और अवागढ रियासत का प्रतिनिधित्व सांसद के रूप में मथुरा वासियों ने स्वीकार किया है। स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले मुरसान रियासत से जुडे राजा महेंद्र प्रताप को मथुरा की जनता ने अपना दूसरा सांसद 1957 में चुना था। हालांकि वे देश के पहले लोकसभा चुनाव 1952 में हार गए थे।
भले ही वह हाथरस की मुरसान रियासत से थे लेकिन उन्होंने अपना महल वृंदावन में ही बना लिया था। इसके बाद अवागढ रियासत से कुंवर मानवेंद्र सिंह तीन बार मथुरा के सांसद बने। उन्हें दो बार हार का भी सामना करना पडा है। 1984 और 1989 के आम चुनाव में कुँवर मानवेंद्र सिंह यहां से सांसद बने। उन्होंनेे दूसरे चुनाव में पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह को पराजित किया था। 1998 के चुनाव में कुंवर मानवेन्द्र सिंह को तीसरी बार हार का सामना करना पडा था। हालांकि 2004 एक बार फिर मानवेन्द्र सिंह लड़े और जीते। 2009 में उन्होंने फिर भाग्य आजमाया, लेकिन जयंत चौधरी से हार गए।