मथुरा। रंगभरनी एकादशी को जहां वृन्दावन के मन्दिरों में रंग की होली शुरू हो जाती है वहीं इसी दिन श्रीकृष्ण जन्मस्थान की अनूठी होली होती है।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान की होली इसलिए अनूठी होती है कि इसमें ब्रज की मशहूर लठामार होली से लेकर सभी प्रकार की होलियों के दर्शन होते हैं। यहां की होली मे द्वापर के दर्शन तो होते ही हैं साथ ही इसमें आध्यात्मिकता का मिश्रण भी होता है।यहां की होली में हंसी ठिठोली तो होती ही है साथ ही होली के दौरान ब्रज की रसिया ’’उड़त गुलाल लाल भये बादर’’ का मिश्रण होता है ।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने बताया कि ब्रज संस्कृति की अनूठी होली का प्रस्तुतीकरण यहां की होली में होता है। यहां की होली किशोरी जी एवं श्यामसुन्दर की उपस्थिति में उनकी आज्ञा लेकर ही होती है। इस होली में बाद में श्यामसुन्दर और उनके सखा भी शामिल हो जाते हैं।
उन्होंने बताया कि ब्रज का चरकुला नृत्य विश्व भर में अपनी धाक जमा चुका है। यहां का चरकुला कुछ न कुछ नवीनता लिए हीे होली प्रेमियों केा परोसा जाता है।यह चरकुला नृत्य ग्रामीण क्षेत्रों में तथा होली पर ही विशेष रूप से होता है। ग्रामीण क्षेत्र में होली में हर व्यक्ति इसलिए नही जा पाता कि उसके पास साधन का अभाव रहता है। यदि कुछ लोग मिलकर भी चले जांय तो या तो वे रंग और कीचड़ से रंगकर आएंगे या फिर राधारानी की गोपियों के डंडे खाकर तृप्त हो जाएंगेे।ग्रामीण क्षेत्र की गोपियां डंडे से ऐसे पिटाई करती हैं कि पिटनेवाला व्यक्ति जन्मजन्मांतर तक इसे भूल नही पाता है।
शर्मा के अनुसार हुक्का और घड़ा नृत्य भी ब्रजवासियों विशेषकर शहर में रहनेवालों को वर्ष में एक बार श्रीकृष्ण जन्मस्थान की होली में देखने को मिलता है।जन्मस्थान के मन्दिरों की छत से मशीन से उड़ता गुलाल आसमान को इन्द्रधनुषी बना देता है।यहां की होली में स्कूली बच्चों को भाग लेने का मौका देकर उनके अन्दर मंच पर जाने पर होनेवाले डर को भी दूर करने में मदद करता है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान की होली में ऐसे भी रसिया गाये जाते है जो प्रायः विलुप्त होते जा रहे हैं। ऐसो रस बरसे बरसाने जैसो तीन लोक मे नाय
यहां की होली में हंसी ठिठोली उस समय अपनी चरम परिणति में पहुंचती है जब लठामार होली को देख रहे किसी पुलिसकर्मी की ओर कोई गोपी रूख करती है और उसकी अचानक पिटाई शुरू कर देती है। वर्दी में तथा हथियार लिए पुलिसकर्मी कों भागता देख दर्शकों के बीच हंसी का फव्वारा फूट पड़ता है।
यहां की होली का आध्यात्मिक पक्ष फूलों की होली में देखने को मिलता है जब किशोरी जी और श्यामसुन्दर पहले आपस में होली खेलते हैं और बाद में ब्रजवासियों में इसी प्रसाद को बांटते हैं।वातावरण में श्रद्वा , भक्ति और संगीत की त्रिवेणी प्रवाहित होने लगती है। कुल मिलाकर श्रीकृष्ण जन्मभूमि की होली दिव्यता और भव्यता को अपने अन्दर इतना समेटे रहती है कि जो भी इसे देखता है भाव विभोर हो जाता है।
रंगभरनी एकादशी से वृन्दावन के मन्दिरों में जहां श्यामाश्याम की होली शुरू हो जाती है वहीं इस दिन से ही एक प्रकार से वृन्दावन में रंग की होली शुरू हो जाती है। यहां की होली इसलिए भी सभी होलियों से अलग होती है क्योंकि किशोरी जी और श्यामसुन्दर रंगभरनी एकादशी के दिन ब्रजवासियों के साथ रंग खेलते हैं। मन्दिरों में श्रद्धालु ठाकुर से होली खेलते हैं किंतु इस बार बांकेबिहारी मन्दिर में गुलाल लेकर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।बाहर से आनेवाले युवक जब मन्दिर में ठाकुर के साथ नकली गुलाल से होली खेलते हैं तो वातावरण गुलाल से इतना आच्छादित होता है कि मन्दिर की चैक में मौजूद तीर्थयात्रियों का दम घुटने लगता है। मन्दिर के प्रबंधक मनीष शर्मा के अनुसार इसे रोकने के लिए ही इस बार बांकेबिहारी मन्दिर के अन्दर गुलाल लेकर जाने में प्रतिबंध लगा दिया गया है। मन्दिरों में अलग अलग तिथियों से श्यामा श्याम टेसू के रंग से होली खेलते हैं तथा जिस भक्त पर यह रंग प्रसाद के रूप में पड़ता है भाव विभोर हो जाता है। इसी दिन से गोकुल, महाबन, गोवर्धन आदि स्थानों पर रंग की होली शुरू हो जाती है कुल मिलाकर ब्रज की होली आपस में प्रेम और सौहार्दपूर्ण जीवन जीने की कला भी सिखाती है।