-रजनीश कपूर-
देखा जाए तो इस अधिनियम के विरुद्ध में हो रहे विवाद में भाजपा और विपक्षी नेताओं द्वारा सही एतराज़ उठाया जा रहा है। यदि सरकार को ऐसा अधिनियम लाना ही था तो उसे नजूल भूमि पर सदियों से बसे हुए परिवारों को पुनर्वास करने की योजना भी बनानी चाहिए थी। यदि नजूल भूमि को अवैध क़ब्ज़े से मुक्त ही कराना है तो इसके हर पहलू पर गहन विचार के बाद ही इसे पेश किया जाना चाहिए था।
बीते सप्ताह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विधान सभा में नजूल संपत्ति अधिनियम पेश किया गया। इस बिल को विधान सभा में तो पास कर दिया गया परंतु उत्तर प्रदेश विधान परिषद में इसका भारी विरोध हुआ जिसके चलते बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी की मांग पर इसे सदन ने पास करने की जगह प्रवर समिति को भेजने का फैसला लेकर इसे फ़िलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया।
उत्तर प्रदेश में कड़े और विवादास्पद फ़ैसले लेने के लिए प्रसिद्ध मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लिया गया यह फ़ैसला सही ज़रूर प्रतीत होता है। परंतु जिस तरह इस विधेयक का विरोध उन्हीं की पार्टी द्वारा किया जा रहा है, तो ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में शायद कुछ संशोधन के साथ इसे पुनः पेश किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि जिस भी ज़मीन का कोई वारिस न हो और वो सरकार के अधीन हो, उसे नजूल जमीन कहते हैं। ग़ौरतलब है कि औपनिवेशिक शासन में अंग्रेजों द्वारा भारत में बड़ी मात्रा में ज़मीनों पर क़ब्ज़ा किया गया था। लेकिन आज़ादी के बाद जिस भी नागरिक के पास उसकी ज़मीन के दस्तावेज थे उन्हें उनकी ज़मीन वापिस मिल गई। परंतु ऐसी कई ज़मीनें थीं जिनकी मिलकियत के प्रमाण या जीवित स्वामी उपलब्ध नहीं थे। ऐसी ज़मीनों को सरकार ने अपने पास रखा, जिसे नजूल ज़मीन कहा गया।
आज़ादी के बाद इस नजूल ज़मीन पर यदि कोई रह रहा था तो उससे सरकार ने किराया वसूलना शुरू किया और उस ज़मीन को लंबे समय के लिए लीज़ पर देना शुरू कर दिया। इसके बावजूद ऐसी कई नजूल ज़मीनें हैं जिन पर लोग अवैध क़ब्ज़ा कर रह रहे हैं। कुछ लोग तो निचले स्तर के अधिकारियों से साँठ-गाँठ कर नजूल ज़मीन के पट्टे भी अपने नाम करवा लेते थे। ऐसी कई ज़मीनों पर खेती, मंदिर, दुकानें या अन्य प्रतिष्ठान भी बनने लगे।
परंतु जैसे ही उत्तर प्रदेश में नजूल संपत्ति अधिनियम पेश हुआ, तो सरकार ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि जिस-जिस नजूल ज़मीन पर लोग ग़ैर क़ानूनी ढंग से रह रहे हैं या जिन नजूल ज़मीनों की लीज़ का किराया सरकार को नहीं दिया जा रहा, उस नजूल ज़मीन को उत्तर प्रदेश की सरकार वापिस ले लेगी और इस भूमि को सरकारी विकास कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। योगी जी द्वारा उठाया गया ये कदम सही था। परंतु विपक्ष को इस बात पर शक है कि विकास कार्य के नाम पर कहीं प्रदेश की लाखों करोड़ की हज़ारों एकड़ ज़मीन को अपने ख़ास चुनिंदा लोगों के बीच बाँट दिया जाएगा।
इतना ही नहीं भाजपा के विधायक भी इस अधिनियम के विरोध में उतर आये हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में ऐसी कई ज़मीनें हैं जिन पर शागिर्द-पेशा वाले परिवार रह रहे हैं, जो सदियों से वहाँ रह रहे हैं परंतु उनके पास कोई भी प्रमाण नहीं है। ऐसे में उनका क्या होगा? कई भाजपा विधायकों का तो यह भी कहना है कि एक तरफ़ तो प्रधान मंत्री आवास योजना से बेघर लोगों को घर दिये जा रहे हैं और वहीं दूसरी ओर जो ग़रीब दशकों से यहाँ रह रहे हैं उन्हें बेघर किया जा रहा है। तो भला ऐसे बिल का क्या औचित्य?
जैसे ही इस अधिनियम पर राजनीति तेज हुई विपक्ष भी खुलकर सामने आया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर इसका विरोध जताते हुए लिखा, “नजूल लैंड का मामला पूरी तरह से ‘घर उजाड़ने’ का फ़ैसला है क्योंकि बुलडोज़र हर घर पर नहीं चल सकता है। भाजपा घर-परिवार वालों के ख़िलाफ़ है। जनता को दुख देने में भाजपा अपनी ख़ुशी मानती है।
जब से भाजपा आई है, तब से जनता रोजी-रोटी-रोज़गार के लिए भटक रही है, और अब भाजपाई मकान भी छीनना चाहते हैं। कुछ लोगों के पास दो जगह का विकल्प है, पर हर एक उनके जैसा नहीं है। बसे बसाये घर उजाड़कर भाजपा वालों को क्या मिलेगा। क्या भू-माफ़ियाओं के लिए भाजपा जनता को बेघर कर देगी? अगर भाजपा को लगता है कि उनका ये फ़ैसला सही है तो हम डंके की चोट पर कहते हैं, अगर हिम्मत है तो इसे पूरे देश में लागू करके दिखाएं क्योंकि नजूल लैंड केवल यूपी में ही नहीं पूरे देश में है। ”
देखा जाए तो इस अधिनियम के विरुद्ध में हो रहे विवाद में भाजपा और विपक्षी नेताओं द्वारा सही एतराज़ उठाया जा रहा है। यदि सरकार को ऐसा अधिनियम लाना ही था तो उसे नजूल भूमि पर सदियों से बसे हुए परिवारों को पुनर्वास करने की योजना भी बनानी चाहिए थी। यदि नजूल भूमि को अवैध क़ब्ज़े से मुक्त ही कराना है तो इसके हर पहलू पर गहन विचार के बाद ही इसे पेश किया जाना चाहिए था। चूँकि उत्तर प्रदेश और केंद्र में दोनों ही जगह भाजपा की सरकार है तो योगी जी को प्रधान मंत्री मोदी के साथ इस पर चर्चा करनी चाहिए थी। इसे भाजपा शासित किसी छोटे राज्य में लागू करना चाहिए था।
इस अधिनियम को लाने से पहले सरकार द्वारा यहाँ पर बसे लोगों को पुनर्वास करने की योजना बना लेनी चाहिए थी। सरकार को इन नजूल भूमि पर किए जाने वाले विकास कार्यों की सूची भी बना लेनी चाहिए थी। सरकार द्वारा नजूल भूमि पर अवैध रूप से पट्टे जारी करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों को दंड देने का भी प्रावधान बनाना चाहिए था। यदि इन सब पहलुओं पर सरकार द्वारा नहीं सोचा गया तो ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ को सलाह देने वाले अधिकारियों ने आनन-फ़ानन में इस अधिनियम को पेश करवाया। देखना यह होगा कि आने वाले समय में प्रवर समिति इस अधिनियम पर क्या सुझाव देती है?