नई दिल्ली। एशियन अस्पताल ने हाल ही में 11 वर्षीय जयेश को अस्पताल से छुट्टी दे दी जो गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) से पीड़ित था। डॉक्टरों ने जयेश का सफलतापूर्वक इलाज कर एक नई जिंदगी दी। यह एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जो प्रति एक लाख में 1-2 लोगों में पाए जाते हैं।
जयेश को 13 सितंबर 2024 को एशियन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसके निचले अंगों में दर्द और कमजोरी थी जो तेजी से सभी अंगों और श्वसन मांसपेशियों को प्रभावित कर रहा था जो बाद में पूरी तरह पक्षाघात में बदल गई। जयेश को गंभीर अवस्था में 10 दिनों के लिए बाल चिकित्सा गहन देखभाल इकाई में वेंटिलेशन की आवश्यकता थी। यदि समय पर जयेश का इलाज न किया जाता तो गिलियन-बैरे सिंड्रोम जानलेवा हो सकता था लेकिन डॉक्टरों की सूझबूझ के कारण उसे तुरंत उपचार किया गया। जयेश के उपचार करने वाले प्रभारी डॉ. विजय शर्मा ने सही समय पर फैसला लेकर उन्हें एक नई जिंदगी दी। डॉ. विजय शर्मा (एसोसिएट डायरेक्टर और हेड – पीडियाट्रिक्स न्यूरोलॉजी एंड चाइल्ड डेवलपमेंट) ने बताया आईवीआईजी और प्रारंभिक चिकित्सा देखभाल ने उनके ठीक होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस तरह के मामले में न्यूरोलॉजी में समय पर हस्तक्षेप और मल्टी डिस्प्लीनरी केयर की जरूरत होती है।
अस्पताल की समर्पित बाल चिकित्सा टीम ने जयेश के गंभीर चरण के दौरान श्वसन सहायता पर ध्यान केंद्रित करते हुए चौबीसों घंटे देखभाल प्रदान की। एक बार बीमारी पर काबू पाने के बाद उसे इंटेंसिव रिहैबलिटेशन प्रोग्राम के लिए बाल चिकित्सा वार्ड में स्थानांतरित कर दिया गया। एक महीने के दौरान जयेश को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए फिजियोथेरेपी, संचार बहाल करने के लिए स्पीच थेरेपी तथा मानसिक रूप से मजबूत करने के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता दी गई। आज, जयेश अब एक बार फिर से न सिर्फ धीरे-धीरे खुद को स्वस्थ महसूस कर रहा है बल्कि कम से कम सहारा लेते हुए बैठ भी सकता है। परिवार ने डॉक्टरों और कर्मचारियों का आभार व्यक्त किया जिसने निराशा के समय में आशा की किरण जगाई।