मथुरा पुरी बृजमंडल में सदैव से प्रतिदिन विभिन्न धार्मिक उत्सवो का रस बरसता रहता है उसी वैदिक सनातन परम्परा के अनुसार मथुरा पुरी में श्री नृसिंह जयंती महोत्सव अलौकिक रूप में मनाया जाता है वैदिक परम्परा के अनुसार मथुरा पुरी के मर्यादा मार्गीय श्रीविष्णु्स्वामी मतानुयायी प्राचीन गोपाल वैष्णवपीठ, श्री गोपाल मंदिर में नृसिंह उपासना का प्रमुख स्थान है जहाँ विराजमान श्री नृसिंह यंत्र का प्रतिदिन वैदिक मंत्रो के साथ पूजन अर्चन होता है साथ ही वैशाख माह की नृसिंह चतुर्दशी से पूर्व प्रारम्भ होने वाली नृसिंह नवरात्रि पर विशेष पूजन.अर्चन एवं अनुष्ठान किया जाता है । इस वर्ष 25 मई मंगलवार को नृसिंह चतुर्दशी पर्व मनाया जायेगा ।
इसके साथ ही मथुरा पुरी बृजमंडल के सभी प्रमुख मंदिरों में भी इस उत्सव की परम्परा रही है। वैष्णव परम्परा में प्रमुख चार जयंती पर्वो रामनवमी नृसिंह चतुर्दशी जन्माष्टमी और वामन द्वादशी में भी यह प्रमुख पर्व है। वैदिक परम्परा के साथ साथ मथुरा पुरी में यह पर्व लोकत्सव के रूप में गली गली मनाया जाता है जिसकी परम्परा भगवान श्री राम के लघु भ्राता शत्रुघन जी के द्वारा लवणासुर वध करने के पश्चात उनके राज्याभिषेक के उत्सव के अवसर पर मुखौटा नृत्य के रुप में प्रारम्भ हुई है जो आज तक उत्सव के रूप में मनायी जा रही है। बृज की परम्परा के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी से प्रारम्भ होकर ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तक चलता है। वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी को विशेष पूजन अर्चन के साथ ठाकुर जी के स्वरूपों के चेहरो को दर्शन के लिए खोला जाता है। उसके पश्चात प्रतिदिन पूजन अर्चन रहता है। इसमें नृसिंह भगवान के साथ वाराह भगवान ब्रह्मा जी हनुमानजी तारका देवी के मुखौटा प्रमुख रहते है । ऐसी मान्यता है कि जब शत्रुघन जी का राज्याभिषेक हुआ तब भगवान श्री राम स्वंय मथुरा पुरी उनका राज्याभिषेक करने पधारे उन्ही की उपस्थिति में यह उत्सव मनाया गया जिसका कि स्वरूप श्री नृसिंह लीला के रूप में प्रदर्शित किया गया था ।
रात्रि काल में प्रारंभ हुआ उत्सव प्रातः काल ब्रहृमुहुर्त तक रहा जिसकी परम्परा आज तक जीवित है। आज भी नृसिंह चतुर्दशी की रात्रि को वाराह भगवान की लीला होती होती जिसमें हनुमान जी राम लक्ष्मण सहित हिरण्याक्ष असकट्या आदि की लीला का प्रदर्शन होता है। ब्रह्म मुहूर्त मे शंकर जी ब्रह्मा जी तारका देवी सहित भक्त प्रह्लाद की लीला का मंचन होता है भगवान नृसिंह जी का प्राकट्य की लीला व हिरण्यकशिपु वध की लीला का सुंदर मंचन मुखौटा नृत्यों के रूप में होता है जोकि त्रेतायुग से चला आ रहा है। जिसकी प्रमाणिकता यह है कि इसमें सतयुग और त्रेतायुग कालीन लीलाओ का ही प्रदर्शन होता है द्धापर कालीन कृष्णलीला का मंचन नही होता है ।
नगर निगम पार्षद पं. रामदास चतुर्वेदी शास्त्री के अनुसार इस उत्सव में नृत्य के साथ विशेष प्रकार के वाद्य यंत्रो का प्रयोग होता है जिसमे.झाझ मृदंग भर्रा ढोलक तबला घडिय़ाल आदि बजाये जाते है जिनकी तरंग व ध्वनियों के साथ स्वरूप नृत्य करते है। रामदास चतुर्वेदी के अनुसार मथुरा पुरी के चौबच्चा मौहल्ला गोपाल घाटी सतघड़ा मानिक चौक गोलपाड़ा सहित गताश्रम टीला हनुमान गली गली भीकचंद विश्राम घाट श्याम घाट सहित द्वारिकाधीश मंदिर में विशेष रूप से लीला मंचन होता है। इसके साथ ही बृजमंडल के वृंदावन गोवर्द्धन में भी लीला प्रदर्शन होता है मथुरा पुरी की गलियो में यह उत्सव पूर्णिमा से लेकर पंचमी तक रात्रि एवं प्रातःकाल मंचन होता है।
इसके विषय में एक लोकोक्ति भी प्रचलन में है *कि गली गली नृसिंहा नाचै*। इस उत्सव में नृसिंह भगवान का हलुआ शरबत खरबूजा आदि का विशेष भोग लगाया जाता है तथा घर घर वितरित किया जाता है। ज्येष्ठ कृष्णा एकादशी तक ठाकुर जी के चेहरो की शयन परम्परा रही है जिसमें विशेष पूजन के साथ ठाकुर जी को शयन कराकर रख दिया जाता है । इसी एकादशी के दिन प्राचीन असकुंडा घाट से बंगाली घाट तक *दरियायी नृसिंह* के रूप में यमुना नदी में नाव में लीला प्रदर्शन की परम्परा रही है जो आज भी इसी रूप में मनायी जा रही है। इस उत्सव के दर्शन के लिए प्रति वर्ष भारत वर्ष से हजारों श्रृद्धालु मथुरा पुरी आते है वर्तमान में करोना संक्रमण से गत वर्ष भी लीलामंचन न होकर मंदिरों में ही उत्सव का आयोजन किया गया था । नगर निगम पार्षद रामदास चतुर्वेदी के अनुसार ऐसे प्राचीन उत्सवो के संरक्षण की ओर पर्यटन एवं संस्कृति विभाग को ध्यान देना चाहिए साथ ही इसका लोकत्सव के रूप में प्रचार प्रसार व उत्सव आयोजन कर्ताओं को प्रोत्साहन मिलना चाहिए जिससे मथुरा पुरी बृजमंडल की सांस्कृतिक परम्पराओं को उचित संरक्षण मिल सके ।