सनातन धर्म में नवरात्र पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व शास्त्रों के अनुसार वर्ष में चार बार आता है चैत्र माह में बासंतिक नवरात्रि, आश्विन माह में शारदीय नवरात्रि,माघ माह और आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्रि । यह पर्व जगज्जननी जगदम्बा देवी मां दुर्गा जी को समर्पित होता है। हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्र पर्व मनाया जाता है और विजया दशमी को पूर्णाहुति हो जाती है।
इस अवसर पर श्री दीपक ज्योतिष भागवत संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य पंडित कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि वैदिक पंचांग के अनुसार आश्विन शारदीय माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि सोमवार 22 सितंबर को देर रात 01 बजकर 23 मिनट पर शुरू होकर 23 सितंबर को देर रात 02 बजकर 55 मिनट तक रहेगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान्य होती है अतः 22 सितंबर सोमवार से शारदीय नवरात्र प्रारंभ होगी। प्रथम दिवस वैदिक विधिविधान के साथ घटस्थापना कर मां नवदुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है।
इस अवसर पर संस्कृत भारती ब्रजप्रांत मथुरा जनपद अध्यक्ष आचार्य ब्रजेन्द्र नागर ने कहा कि वैदिक गणना अनुसार 22 सितंबर शारदीय नवरात्र के प्रथम दिवस घटस्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः काल 06 बजकर 09 मिनट से 08 बजकर 06 मिनट तक रहेगा इसके साथ ही अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 11 बजकर 49 मिनट से 12 बजकर 38 मिनट के मध्य भी सुविधा अनुसार घटस्थापना कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस बार जगदम्बा मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी और नरवाहन पर प्रस्थान करेंगी जो अत्यंत शुभ संकेत है और सुख शांति समृद्धि का द्योतक है।
इस अवसर पर ज्योतिषाचार्य पंडित दीपक चतुर्वेदी, साहित्याचार्य शरद चतुर्वेदी, सौरभ, ऋषभ देव गोविंद देव मनोज पाठक, मनीष पाठक,निरंजन शास्त्री आदि ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा तिथि पर शुक्ल और ब्रह्म योग सहित कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में मां भगवती आदिशक्ति नव दुर्गा जी की नौ दिन तक पवित्रता के साथ पूजा करने से साधक को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख समृद्धि, सौभाग्य में वृद्धि होती है।