-विकेश कुमार बडोला-
भारत और पाकिस्तान के मध्य सैन्य संघर्ष, देश व दुनिया में राजनीतिक-सामरिक उथल-पुथल, देश के अंदर उपस्थित विरोधी शक्तियों की भारतविरोधी गतिविधियां, कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में पहली बार छत्तीस से भी अधिक घंटों तक हुई तेज मूसलाधार वर्षा, वर्षा के कारण अस्त-व्यस्त व परास्त प्रांत, राजधानी दिल्ली सहित पूर्वोत्तर दक्षिण-पश्चिम व मध्य भारत में वातावरण का अकल्पनीय परिवर्तन, सिंगापुर व हांगकांग में कोरोना के रोगियों में वृद्धि, दुनियाभर में एक बार पुन: कोरोना के परिवर्तित विषाणु के संक्रमण की आशंकाएं, मौसम का अति अप्रत्याशित असंतुलन, तेज हवाएं, आंधी-तूफान, धूल से भरा हुआ वायुमंडल, धुंध से लिपटा हुआ नभ व क्षितिज, कहीं अत्यधिक घुटनभरा पर्यावरण तो कहीं सहन करने की सीमा से अधिक गर्मी, कहीं किसी भूभाग या पर्वतीय क्षेत्र में शीताधिकता, ये सभी घटनाक्रम प्रतिदिन ही जीवन को प्राकृतिक विप्लव से अस्थिर कर रहे हैं। मानवीय जीवन के पूर्ण विनाश का पूर्वाभ्यास निरंतर इसी प्रकार हो रहा है। ऐसे में बार-बार याद आता है कि कभी किसी स्थिर समयकाल में ऋतुओं की छह श्रेणियां होती थीं। प्रत्येक श्रेणी अपनी संपूर्ण अवधि की जलवायु को अपनी प्राकृतिक विशिष्टता के साथ अनुरक्षित रखा करती थी। तब प्राकृतिक असंतुलन की चिंता दैनिक चिंता नहीं होती थी।
कितना जीवनोचित कालखंड रहा होगा वह! उस समयावधि में जिन्होंने जीवन व्यतीत किया होगा, वे वास्तव में प्राकृतिक रूप में भाग्यशाली रहे होंगे। किंतु अब ऐसा जीवन नहीं है। अब मनुष्य का ऐसा भाग्य नहीं। प्राकृतिक उथल-पुथल की अधिकता के बाद भी अधिसंख्य मनुष्यों के मन-मस्तिष्क भावी जीवन-परिस्थितियों के लिए विशेष रूप में जागरूक नहीं हैं। उनकी निरंतर बढ़ती भौतिक इच्छाएं-अभिलाषाएं उन्हें ये तक सोचने-विचारने का अवसर नहीं दे रहीं कि एक दिन उनका जीवन जलवायु विकृतियों के भयंकर दुष्चक्र में बंधकर उन्हें निरुपाय पीडि़त छोड़ देगा। जीवन की प्रमुख आवश्यकताओं खाद्यान्न और जल के स्रोतों, संसाधनों और प्रचक्र पर पंचतत्त्वों की अस्थिरता एवं विकृतता का सर्वाधिक दुष्प्रभाव हुआ है। परिणामस्वरूप न तो सहज श्वासें लेने योग्य वायुमंडल उपस्थित है और न ही पौष्टिक खाद्यान्न व जल उपलब्ध है। ऐसे में मानव का तन और मन दोनों ही असाध्य रोगों से घिर रहे हैं। जो मर-खप रहा है वह भूला-बिसरा हो जा रहा है और जो जी रहे हैं वे अपने अनुसार, अपनी मस्ती में बस जैसे-तैसे जी ही रहे हैं। मानवीय जीवन की यह कैसी दुर्गति है! निरंतर निकृष्ट होता मौसम हतप्रभ करता है। इस वर्ष मई माह भी विचित्र ढंग से परिवर्तित होता रहा। बैसाख और ज्येष्ठ के संगम की यह माहावधि भी अप्रतिम रूप लिए रही। इस अवधि में प्रत्यक्ष रूप में तो ग्रीष्म ताप में कमी हुई। यदा-कदा शीतल वायु प्रवाह होता रहा। घन विस्फोटों के उपरांत किसी एक पर्वतीय अथवा समतल नगरीय स्थान पर तीव्र धाराओं के साथ वर्षण हुआ। आंधी-तूफान आया। प्रात:काल-संध्याकाल की जलवायु वातानुकूलित प्रतीत हुई। साथ ही दोपहर व अपराह्न काल के ग्रीष्म ताप में अत्यधिक वृद्धि भी हुई। राजधानी दिल्ली सहित पूर्व, पश्चिमोत्तर और दक्षिण व मध्य भारत में अंधड़-तूफान आए। तेज हवाएं चलीं। तीव्र वर्षण हुआ। घन विस्फोट के कारण एक ही स्थान पर अत्यधिक तीव्र वर्षा हुई। जलवायु की ऐसी दशा केवल भारतवर्ष में ही नहीं थी। विश्व स्तर पर हर दृष्टि में अग्रणी देश अमरीका के अनेक भूभागों पर स्थित नगरों-महानगरों पर भी ऐसी ही पारिस्थितिकीय अस्थिरता परिव्याप्त रही। इस देश में 15 से 17 मई के मध्य और विशेषकर 16 मई को आए तूफान और बवंडर के कारण 27 लोगों की मृत्यु हो गई। ध्वस्त क्षेत्रों में धरातल पर कार्यरत राहत बल के कर्मियों ने आशंका व्यक्त की है कि मृतकों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। वहां दक्षिण-पूर्वी केंटुकी, लारेल काउंटी, मिसौरी, विस्कान्सिन, ग्रेट लेक्स, टेक्सास, सेंट लुई क्षेत्रों में अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन के कारण आधुनिकता की व्यवस्थाएं पूर्ण रूप में ध्वस्त हो गईं। विशाल वृक्ष जड़ से उखड़ गए। आवासीय भवन ध्वस्त हो गए। विनाशकारी मौसम में नगर के नगर उजड़ गए, अस्त-व्यस्त हो गए। इस परिस्थिति में जीवित बचे और टूटे-फूटे घरों, भवनों व भग्नावशेषों में फंसे हुए लोगों की हरसंभव माध्यम से खोज की गई। इस प्राकृतिक उथल-पुथल में वहां विद्युतापूर्ति बाधित हो गई। जलापूर्ति रुक गई।
सामान्य जनजीवन अकस्मात ही कठिन हो गया। प्रतिकूल मौसम के संबंध में अमरीका का उल्लेख करना इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि विगत सौ-डेढ़ सौ वर्षों में इसी देश ने विश्व के सभी देशों को वैज्ञानिक आविष्कारों, औद्योगिक उत्पादन और विज्ञान के अभिशापित पथ पर चलने के लिए सर्वाधिक दुष्प्रेरित किया है। ऐसी ही पारिस्थितिकीय परिस्थितियां भारत की राजधानी दिल्ली, आस्ट्रेलिया के कुछ क्षेत्रों तथा बेंगलुरू में भी थीं। वैसे तो माह के आरंभ में ही मौसम के लक्षण असामान्य होने आरंभ हो गए थे। असामान्य जलवायु का यह प्रभाव न्यूनाधिक मात्रा में विश्व के सभी महाद्वीपों पर हुआ। एशिया द्वीप के भूभागों में से एक महत्त्वपूर्ण भारतीय-भूभाग की ऋतुविकृतियों के प्रत्यक्ष साक्षी तो राजधानी दिल्ली सहित, पूर्वोत्तर, पश्चिम एवं दक्षिण-मध्य भारत के जन-जन हैं ही, किंतु विश्व के विभिन्न क्षेत्रों पर भी जीवनघाती जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव भयंकर रूप में हो रहा है, इसके साक्ष्य भी प्रामाणिक दृश्य-श्रव्य व मुद्रित समाचारों के माध्यम से प्राप्त हो ही रहे हैं। ऐसी अवस्था में भी भारत तथा दुनिया के जीवित लोगों के लिए प्राकृतिक झंझावात तब तक ही आश्चर्य व भय का विषय होता है, जब तक यह उपस्थित होता है। अनेक लोगों के प्राण लेने वाला और किसी एक क्षेत्र की पूरी जीवन-व्यवस्था को उजाडऩे वाला तूफान जीवित लोगों के लिए विशेष विचारणीय विषय नहीं होता है। यह जीवित लोगों का प्रकृतिशक्ति के प्रति दुस्साहस नहीं तो फिर क्या है! वर्ष-प्रतिवर्ष मानवीय जीवन के सम्मुख प्राकृतिक, पर्यावरणीय तथा जलवायु संबंधी नए-नए असंतुलन उत्पन्न हो रहे हैं। पांचतात्त्विक पारिस्थितिकी परिवर्तन के ऐसे मूल कारणों पर ध्यान लगाने के बदले देश-दुनिया के कर्ताधर्ताओं का ध्यान अनियंत्रित तथा असंतुलित आधुनिक प्रगति पर ही लगा हुआ है। ऐसी प्रगति के भावी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जो-जो अप्राकृतिक उत्पादन, खनन-उत्खनन व साधन-संसाधन प्रतिदिन ही बढ़ रहे हैं, क्या उस कारण मानवास्तित्व के सम्मुख उठ खड़े हुए जलवायु परिवर्तन कारकों के निवारण की दिशा में कुछ क्रांतिकारी कर्मकत्र्तव्य निर्धारित होंगे अथवा प्रगति की आत्मघाती, जीवघाती एवं जीवनघाती यात्रा ऐसी ही चलती रहेगी? याद रखें कि प्रकृति तथा प्राकृतिक तत्त्वों को वर्तमान मानवीय जीवन के अनुकूल नहीं किया जा सकता है, बल्कि हमें ही अपने जीवन व जीवन-संबंधी गतिविधियों को प्राकृतिक व्यवस्था के अनुसार निर्धारित करना होगा।