-सनत जैन-
केंद्र सरकार द्वारा यूपीएससी के पदों पर बिना आरक्षण लैटरल भर्ती 2018 के बाद से लगातार की जा रहीं हैं। लेकिन इस मामले ने 2024 में तूल पकड़ लिया है। 2018 से लेकर अभी तक केंद्र सरकार विभिन्न मंत्रालयों में विशेषज्ञों के नाम पर लैटरल भरती समूह में करती चली आ रही है। इस बार केंद्र सरकार द्वारा 45 पदों के लिए विज्ञापन प्रकाशित कराया गया है। पिछले 6 वर्षों में लगभग 200 पदों पर नियुक्तियां हो चुकी हैं। उसके बाद से आरक्षण मुद्दे पर पूरे देश में बवाल हो गया है। मोदी सरकार द्वारा 2018 के बाद से लैटरल नियुक्तियां समूह में की जा रही हैं। अभी तक यूपीएससी परीक्षा के माध्यम से इनका चयन होता था। 15-20 वर्ष की सेवा के पश्चात, चयनित अधिकारी उप सचिव, संयुक्त सचिव और सचिव पद पर पहुंचते थे। अब सीधे ही भर्ती विभिन्न मंत्रालयों में उपसचिव, संचालक और संयुक्त सचिव के रूप में की जा रही है। एक तरह से यह नियमों का दुरुपयोग है। संवैधानिक प्रावधानों का पालन भी सरकार नहीं कर रही है। जिसके कारण यह मामला अब तूल पकड़ रहा है। एनडीए के सहयोगी दलों ने भी इस तरह से की जा रही नियुक्तियों का विरोध शुरू कर दिया है। जनता दल यू ने इस तरह की भर्ती पर गंभीर चिंता जताई है। वहीं केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी स्पष्ट रूप से चेतावनी देते हुए कहा है कि इस तरह की नियुक्तियों में आरक्षण का पालन किया जाना चाहिए। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भी इसे संविधान विरोधी बताते हुए आरक्षण खत्म करने की मांग की है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है, सरकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा से जुड़े हुए लोगों को प्रमुख पदों पर सीधे नियुक्त कर रही है। इस तरह की नियुक्तियों से दलित, आदिवासी ओर पिछड़े वर्ग के हितों का नुकसान हो रहा है। संविधान में जिस तरह से कार्यपालिका में अधिकारियों का चयन किया जाना है, उसका पालन भी सरकार नहीं कर रही है। सरकार में पूंजीपतियों का सीधा हस्तक्षेप बढ़ रहा है। लैटरल नियुक्तियों में उन लोगों की भर्ती हो रही है, जो कारपोरेट जगत से सीधे सरकारी सेवा के महत्वपूर्ण पदों पर आ रहे हैं। इनकी नियुक्ति विशिष्ट तरीके से की जा रही है। कांटेक्ट पर नियुक्ति होने के कारण यह कभी भी छोड़ कर जा सकते हैं। इन पर जिम्मेदारी भी तय नहीं की जा सकती है। सेबी में माधवी बुच को पहले डायरेक्टर और फिर अध्यक्ष बनाने का मामला भी विवादों में आ गया है। जो खुलासे हुए हैं, वह बड़े आश्चर्यचकित करने वाले हैं। सरकार के ऊपर यह आरोप लग रहा है कि औद्योगिक समूहों के अधिकारियों को पिछले दरवाजे से सरकारी पदों पर नियुक्ति की जा रही है। यह अधिकारी औद्योगिक समूह के हित में नीतियां बनाते हैं। संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है। सरकार ज़ब किसी निर्णय में फंसने लगती है तो इस स्थिति में सरकार कांग्रेस के ऊपर ठीकरा फोड़कर बचने का रास्ता बनाती है। सरकार की ओर से यही प्रयास किया गया है। इस तरह की नियुक्तियां 50 वर्षों से हो रही हैं। 1976 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लैटरल एंट्री के माध्यम से वित्त सचिव बनाया गया था। राजीव गांधी की सरकार ने सेम पित्रोदा को नॉलेज कमीशन का अध्यक्ष बनाया था। विमल जालान को मुख्य आर्थिक सलाहकार रिजर्व बैंक बनाया गया था। 2009 में कौशिक बसु को केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के पद पर नियुक्त किया गया था। रघुराम राजन को भी वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया था। मोंटेक सिंह अहलुवालिया 2004 से 2014 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर रहे। 2009 में नंदन नीलकेणी को भी यूआइडीएआइ का मुखिया बनाया गया था। पिछले 50 वर्षों में केंद्र सरकार में विशेषज्ञ के रूप में जिन लोगों की नियुक्ति हुई थी, उनकी संख्या वर्तमान की तुलना में बहुत कम है। वित्त और तकनीकी के जानकार उस समय देश में बहुत कम विशेषज्ञ थे। जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानकारी और विशेषज्ञता रखते थे। पिछले 6 वर्षों में मोदी सरकार द्वारा उप सचिव, सचिव और संचालक स्तर पर जो नियुक्तियां की जा रही हैं। उसमें हमेशा से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी या भारतीय सेवा के अधिकारी ही नियुक्त किए जाते थे। लैटरल भरती का मुद्दा अब गरमा गया है। इसे उच्च पदों पर आरक्षण खत्म करने से लेकर जोड़ा जा रहा है। सरकार ने अपनी जिद नहीं छोड़ी, ऐसी स्थिति में एनडीए सरकार में दरार पड़ सकती है। केंद्र सरकार पहले ही जाति आरक्षण और संविधान को खत्म करने के आरोप में बुरी तरह से घिरी हुई है। बजट सत्र में भी नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने वित्त मंत्रालय में अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर वित्त मंत्री को सदन के अंदर घेरा था। इस बार केंद्र में गठबंधन की सरकार है। आरक्षण जैसे संवेदनशील मसले पर यदि उसके सहयोगी दल उसका साथ नहीं देंगे, तो सरकार के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है। सरकार के अस्तित्व पर भी संकट आ सकता है। जिसके कारण देश में राजनीतिक हलचल बड़ी तेजी के साथ बढ़ गई है।