दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। अब आम आदमी पार्टी (आप) में आतिशी को नया मुख्यमंत्री चुना गया है। उन्हें विधायक दल ने सर्वसम्मति से नेता चुना, क्योंकि वह केजरीवाल की पसंद थीं। आतिशी ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया है। जैसे ही आतिशी मुख्यमंत्री पद और कैबिनेट के अन्य चेहरे शपथ ग्रहण करेंगे, उसी के साथ दिल्ली में ‘आतिशी पारी’ का आगाज होगा। भाजपा की सुषमा स्वराज और कांग्रेस की शीला दीक्षित के बाद आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री होंगी। सुषमा तो मात्र 52 दिन ही मुख्यमंत्री रहीं, जबकि शीला दीक्षित ने 15 साल 25 दिन तक राजधानी शहर पर शासन किया। आतिशी की ताजपोशी भी अल्पकालिक व्यवस्था है। यदि ‘आप’ लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव में विजयी रही, तो उसके बाद केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बनेंगे। क्या तब उन पर सर्वोच्च अदालत की शर्तें लागू नहीं होंगी? क्या नए जनादेश के साथ न्यायिक आदेश के दायरे भी बदल जाते हैं?
बहरहाल आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने का समझौता मानसिक तौर पर किया गया है, लिहाजा विधायक दल का नेता चुने जाने के बावजूद आतिशी ने साफ तौर पर बयान दिया है कि दिल्ली का एक ही मुख्यमंत्री है-केजरीवाल। वह मेरे राजनीतिक गुरु और बड़े भाई हैं। हमें पूरी ताकत और एकजुटता से प्रयास करना है कि नया जनादेश भी ‘आप’ को ही मिले और केजरीवाल एक बार फिर मुख्यमंत्री बन सकें। आतिशी ने यह भी कहा कि वह खुश भी हैं और दुखी भी हैं, क्योंकि केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया है। वह दुखी मन से ही सत्ता संभालेंगी। दिल्ली के लोग भी व्यथित हैं और रो रहे हैं कि केजरीवाल ने इस्तीफा क्यों दिया?’’ राजनीतिक विरोधी और विश्लेषक, बेशक, आतिशी को ‘रबर स्टांप’, ‘रिमोट कंट्रोल’ या ‘खड़ाऊं मुख्यमंत्री’ करार दें, लेकिन वह नाकाबिल नहीं हैं। आतिशी बहुशिक्षित हैं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से उन्होंने दो मास्टर्स डिग्रियां हासिल की हैं। इसके लिए उन्हें अलग-अलग छात्रवृत्ति दी गई। आतिशी सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों की नेता हैं।
उन्होंने जल-सत्याग्रह में भी भाग लिया। कई साल अध्यापन का कार्य भी किया। वह अन्ना हजारे के ‘भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन और अनशन’ की देन हैं। हालांकि राजनीतिक क्षितिज पर आतिशी का उदय बाद में हुआ। यदि उन्हें ‘खड़ाऊं मुख्यमंत्री’ मान भी लिया जाए, तो ऐसा कौनसा विरला मुख्यमंत्री या मंत्री है, जो आलाकमान की तय लकीर पर न चलता हो? केजरीवाल 9 साल से अधिक समय तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे हैं, झुग्गियों में आम आदमी के लिए काम किया है और भारत सरकार में आयकर आयुक्त के पद पर काम किया है। यानी सवाल प्रशासन और अनुभव का है। इनके अलावा, केजरीवाल ‘आप’ के राष्ट्रीय संयोजक हैं, उनके नाम पर ही वोट मिलते हैं, यदि वह कुछ आग्रह करते हैं या नीतिगत सुझाव देते हैं, तो उन्हें आतिशी कैसे खारिज कर सकेंगी? हमारे देश में राजनीतिक दलों के भीतर इतना लोकतंत्र नहीं है कि आलाकमान की परवाह न की जाए। आलाकमान किसी भी मुख्यमंत्री या मंत्री की ‘कुर्सी’ छीन भी सकता है। बहरहाल आतिशी ऐसी नेता बन गई हैं, जो सिर्फ 12 साल की राजनीति में ही साधारण कार्यकर्ता से मुख्यमंत्री बन रही हैं। उन्होंने मंत्री रहते हुए 13 विभागों की जिम्मेदारी संभाली है, लिहाजा प्रशासन का अनुभव पर्याप्त होना चाहिए। हालांकि वह पहली बार विधायक चुनी गई थीं और अब दूसरा चुनाव लड़ेंगी। आतिशी प्रत्येक स्तर पर केजरीवाल, पार्टी और सरकार के प्रति निष्ठावान रही हैं। केजरीवाल और अन्य नेताओं ने जांचा-परखा होगा! शराब घोटाले के मद्देनजर और बड़े नेताओं को जेल भेजने के खिलाफ भाजपा और केंद्र सरकार की वह मुखर विरोधी रही हैं। बहरहाल अब उन्हें चुनौतीपूर्ण दायित्व दिया गया है। सबसे पहली चुनौती चुनाव और महिला सम्मान राशि के तौर पर 1000 रुपए प्रति महिला की योजना को लागू करना है। इसके अलावा, कुछ और योजनाएं भी महत्वपूर्ण हैं, जो केजरीवाल के जेल जाने के कारण लटकी-अटकी पड़ी हैं।