-नरेन्द्र भारती-
दुनिया में भूकंप थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। 3 अक्टूबर 2023 मंगलवार क़ो नेपाल से लेकर उत्तर भारत तक आये भूकंप से जनमानस खौफनाक है। गनीमत रही की कोई मानवीय तबाही नहीं हुई और जान माल का नुकसान नहीं हुआ। नेपाल के पश्चिमी क्षेत्र में मंगलवार क़ो आधे घंटे के अंतराल में दो बार तेज भूकंप आया। भूकंप से नेपाल दहल गया यहां पर कई इमारते धराशाई हो गई 11लोग घायल हो गए। भूकंप का केंद्र नेपाल था और भारत में सोनीपत व असम भूकंप के केंद्र थे। 25 अप्रैल 2015 क़ो बहुत ही त्रासदी हुई थी जिसकी तीव्रता 7.8 थी तब 8 हजार लोगों की जान गई थी। राजधानी दिल्ली समेत पुरे उत्तर भारत में भूकंप के झटके महसूस किये गए। भूकंप की तीव्रता 6.3 थी भूकंप का केंद्र धरती के पांच किलोमीटर नीचे था। वर्ष 2016 में पूर्वोतर समेत देश के आठ राज्यों में भूकंप से आठ लोगों की मौत और 100 से ज्यादा लोगों का जख्मी होना बहुत ही दुखद घटना थी। इस भूकंप ने पूरे देश के हिला दिया था रिक्टर पैमाने पर इस भूकंप की तीव्रता 6.7 थी। इस भूकंप का केन्द्र इंफाल से 33 किलोमीटर दूर था। भूकंप से राजधानी इंफाल में भारी नुक्सान हुआ था। नव वर्ष के आगमन 2016 में हुआ यह भूकंप काल बनकर आया था और लोग असमय काल के गाल में समा गए थे। देश के अन्य राज्यों में भी काफी नुक्सान हुआ है। इस विनाशकारी भूकंप से जनमानस खौफजदा है कि कही फिर से भुकंप न आ जाए। असम के गुवाहाटी में व अन्य स्थानों पर 20 से अधिक लोग घायल हो गए थे। भूकंप की वजह से बिहार के किशनगंज में एक और पशिचम बंगाल में आठ लोगों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हो गए थे। सरकारें जितना पैसा मुआवजा राशि पर खर्च करती है उतना लोगों को भूकंप जैसी त्रासदियों से बचाव के लिए लोगों को कैपों के माध्यम से जागरुक किया जाना चाहिए। इससे पहले भी भारत में कई भीषण त्रासदियां हो चूकी है 26 जनवरी 2001 कों गुजरात में आए भूकंप ने भारतीय समाज को कभी नहीं भूल पायेगा जहां तबाही का मंजर बहुत ही दर्दनाक था। इसमें लगभग 20000 लोग मारे गए थे। 4 अप्रैल 1905 को हिमाचल के कांगड़ा में आए विनाशकारी भूकंप में 20000 हजार लोग मौत के आगोश में समा गए थे। भूकंप की विभिषिका में हजारों लोग अपंग होते है बच्चे अनाथ हो जाते है हजारों लाशे मलवे में दफन हो जाती है। भूकंप का दंश ताउम्र झेलते है। भारत में कभी भूकंप तो कभी सुनामी व बाढ़ जैसीे आपदाएं अपना जलवा दिखाती है तो कभी बाढ़ का रौद्र रुप जिदंगियां लीलता है। लोग प्रकृति से छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आते जब प्रकृति अपना बदला लेती है तब लोगों को होश आता है। सरकार को चाहिए कि इमारतो का निर्माण करने वाले बिल्डरों को आदेश दे की भीड़ःभाड़ वाले शहरों में भूकंप रोधी भवनों का निर्माण करना चाहिए। समय पर भीषण त्रासदियां होती रहती है मगर हम आपदाओं से कोई सबक नहीं सीखते। हर त्रासदी के बाद भूकंप रोधी निर्माण की जरुरत पर चर्चा होती है मगर कुछ दिनो बाद जब जीवन पटरी पर चलने लग जाता है तो इन बातो को भूला दिया जाता है। कुछ लोग भूकंपरोधी भवन नहीं बनाते है दस-दस मजिले बनवाते है लेकिन एक दिन ऐसी आपदाओं के कारण इन्ही घरों में जमीदोज हो जाते है। अगर बीती त्रासदियों से सबक सीखा जाए तो आने वाले भविष्य को सुरक्षित कर लिया जा सकता है। कहते है कि प्राकृतिक आपदाओं को रोक नहीं सकते परन्तु अपने विवेक व ज्ञान से अपने आप को सुरक्षित कर सकते है। शहरों में बिना मानको के इमारतों का निर्माण किया जा रहा है। अगर सही मानको के मुताबिक निर्माण किया जाए तो जान-माल की ऱक्षा हो सकती है और होने वाली तबाही को कम किया जा सकता है मगर हादसों आपदाओं से न तो लोग सबक सीखते है और न ही सरकारें सबक सीखती हैं। कुछ दिन सरकारी अमला औपचारिकता निभाता और उसके बाद अगली घटना तक कोई कारगर उपाय नहीं किए जाते। सरकारो को इस आपदा पर मंथन करना चाहिए तथा शिविर लगाकर महानगरों, शहरों व गांवो के लोगों को जागरुक किया जाए कि भूकंपरोधी मकानों का निर्माण ही तबाही से बचा सकता है। सरकार को चाहिए की प्रत्येक गांव से लेकर शहरो तक आपदा प्रबंधन कमेटियां गठित करनी चाहिए जिसमें डाक्टर नर्स व अन्य प्रशिक्षित स्टाफ रखना चाहिए ताकि व त्वरित कारवाई करके लोगों केा मौत के मुंह से बचा सके। अक्सर देखा गया है कि जब तक शहरों में स्थित आपदा प्रबंधन की टीमें घटना स्थनों पर पहुचती है तब तक बची हुई सासे उखड़ जाती है लाशों के ढेर लग जाते है। अगर समय पर आपदा ग्रस्त लोगों को प्राथमिक सहायता मिल जाए तो हजारों जिदंगियां बचाई जा सकती हैं। देश में आज तक बडे-बड़े विनाशकारी भूकंपों के कारण लाखो लोग मारे जा चुके है। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार को कालेजों व स्कूलों में भी माकड्रिल जैसे आयोजन करने चाहिए ताकि अचानक भूकंप जैसी आपदाओं से अपना व अन्य का बचाव किया जा सके। स्कूलो व कालेजों मे चल रहे राष्ट्रीय सेवा योजना व स्काउट एंड गाइड के स्वंयसेवियों को आपदा से निपटने के लिए पारगंत किया जाए। अगर यही स्वयसेवी अपने घर व गांवों में लोगों को आपदा से बचने के तरीके बताए तो काफी हद तक नुक्सान को कम किया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि आपदा से बचाव के लिए प्रत्येक विभाग के कर्मचारियों को पूर्वाभ्यास करवाया जाए ताकि समय पर काम आ सके। पुलिस व अग्शिमन के कर्मचारियों को भी समय पर ऐसे आयोजन करते रहना चाहिए। अगर सभी लोग आपदा से बचाव के तरीके समझ जाएगें तो तबाही कम हो सकती है। प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी, छेड़छाड़ बंद करनी होगी। अगर अब भी मानव ने प्रकृति पर अत्याचार बंद नहीं किया तो प्रकृति अपना बदला लेती रहेगी और मानव को सबक सीखाती रहेगी। वक्त अभी संभलने का है।