नई दिल्ली । दिल्ली सहित देश के सभी बड़े शहरों की हवा में एक नए और अदृश्य खतरे की मौजूदगी सामने आई है। ये खतरा है वोलेटाइल आर्गनिक कंपाउड (वीओसी) हवा में घुलने वाला ऐसा रसायन जो कैंसर जैसे गंभीर रोगों का कारण बन सकते हैं और वातावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। एक नई स्टडी में पूर्व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अपर निदेशक डॉ. एस. के. त्यागी ने वीओसीकी निगरानी और नियंत्रण को लेकर गंभीर चेतावनी दी है। वीओसी वे कार्बनिक यौगिक हैं जो हवा में तेजी से वाष्पित हो जाते हैं और अन्य रासायनिक तत्वों से मिलकर खतरनाक गैसें पैदा करते हैं। यह गैसें बेंजीन, टोल्यून, जायलीन, क्लोरोफॉर्म, मिथाइल, एसीटोन जैसी होती हैं, जो न केवल कैंसर कारक हैं, बल्कि पीएम 2.5 और ओजोन निर्माण में भी प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
डॉ. त्यागी के अनुसार, भारत में वीओसी को लेकर न मानक तय हैं, न निगरानी व्यवस्था। जबकि ये पदार्थ हवा में घुलकर श्वसन, न्यूरोलॉजिकल और कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं। दिल्ली जैसे शहरों में जहां पीएम 2.5 पहले ही चिंता का विषय है, वहीं वीओसी उसका 20–30 प्रतिशत योगदानकर्ता हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने वीओसी रोकने के लिए स्टेज-1 और स्टेज-2 वेपर रिकवरी सिस्टम को पेट्रोल पंपों पर अनिवार्य किया था। तेल कंपनियों पर जुर्माना भी लगाया गया, लेकिन निगरानी की कमी के कारण सुधार अब तक अधूरा है।
स्टडी में सुझाए गए अहम कदम: सभी महानगरों में वीओसी निगरानी नेटवर्क स्थापित किए जाएं। निगरानी के बाद वीओसी के लिए राष्ट्रीय मानक तय किए जाएं। राज्य सरकारें केंद्र द्वारा तय मानकों को सख्ती से लागू करें। उत्पत्ति स्थलों पर डबल सील वाल्व जैसी तकनीकें लगाई जाएं। सभी योजनाओं पर समयबद्ध और पारदर्शी कार्यान्वयन हो। दिल्ली सहित देशभर में वीओसी की तकनीकी कार्यशालाएं आयोजित हो चुकी हैं। देश-विदेश के वैज्ञानिकों ने सुझाव दिए, लेकिन अब भी काम कछुआ गति से ही हो रहा है।