मलूक पीठाधीश्वर डॉ. राजेन्द्र दास देवाचार्य का प्राकट्योत्सव महापर्व ऋषि पूजन के साथ धूमधाम से मना
सनातन धर्म उत्थान का लिया पुरजोर संकल्प
वृन्दावन। मलूक पीठाधीश्वर डॉ. राजेन्द्र दास देवाचार्य का प्राकट्योत्सव महापर्व ऋषि पूजन प्रकांड विद्वान और मनीषियों की मौजूदगी के साथ महा आयोजन मनाया गया। स्थानीय पानीघाट स्थित मलूक पीठ सेवा संस्थान की गौशाला के नवनिर्मित सत्संग लीला मंडपम में मलूक पीठाधीश्वर संत डॉ राजेन्द्र दास देवाचार्य महाराज द्वारा सप्त ऋषि पूजन के माध्यम से प्राचीन सनातनी परंपराओं के निर्वहन का आह्वान कर सनातन धर्म उत्थान का संकल्प भी दिलाया गया। आयोजन का शुभारंभ कार्ष्णि गुरू शरणानन्द महाराज के साथ-साथ देश के विभिन्न प्रांतों से आए देश के समकालीन प्रमुख सप्त ऋषिकल्पों के अतिरिक्त विश्व हिन्दु परिषद के अंतराष्ट्रीय संरक्षक बड़े दिनेश जी के साथ संयुक्त रूप से मलूक पीठाधीश्वर राजेन्द्र दास देवाचार्य महाराज द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। इस अवसर हिन्दू राष्ट्र के निर्माण की मुखरता से मांग रखने वाले बागेश्वर धाम सरकार पण्डित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने भी कार्यक्रम में उपस्थित होकर महाराज श्री को उनके प्राकट्योत्सव के पावन पर्व पर बधाई दी । कार्यक्रम का शुभारंभ वराह पीठाधीश्वर राम प्रवेश दास महाराज द्वारा ऋषि पूजन का महत्व एवं भारतवर्ष के वर्तमान काल मे संभवत: प्रथम बार इस प्रकार की परंपरा का शुभारंभ करने के पीछे के महती कारणों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया ।
इस अवसर पर नाभा पीठाधीश्वर सुतीक्ष्ण दास देवाचार्य महाराज ने मलूक पीठाधीश्वर की संतों के बीच उपमा तारों के मध्य चन्द्रमा से करते हुए उनकी दैन्यता एवं विनयशीलता को वैष्णवों के लिए आदर्श बताया। उन्होंने महाराज श्री के द्वारा गौसेवा, दीनदुखियों एवं जीवमात्र के प्रति सहिष्णुता एवं मंगलकामना का भाव होने को सभी वैष्णवों एवं संत समाज के लिए अनुकरणीय बताया। इस अवसर पर विहिप के अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षक बड़े दिनेश जी ने सप्त ऋषि पूजन उत्सव पर अयोध्या में निर्माणाधीन मन्दिर की कृति भेंट की। उन्होंने वेदों सहित सनातन धर्मग्रन्थों में ऋषियों के उल्लेख और उनकी महत्वता का वर्णन करते हुए महाराजश्री द्वारा सप्तऋषि कल्पों के पूजन की परंपरा के पुनर्जीवित किए जाने को समस्त सनातनी भाईयों के लिए गौरव का विषय बताते हुए मंच से सभी सनातन धर्मप्रेमी भक्तवृन्दों को आगामी वर्ष 2024 की 22 जनवरी को अयोध्या में निर्मित रामलला के दिव्य एवं भव्य मन्दिर निर्माण में प्रभु श्री राम जानकी के प्राण प्रतिष्ठा की सूचना एवं आमंत्रण देते हुए कहा कि उस दिन तो सभी लोगों को अयोध्या में आना संभव नहीं लेकिन प्रभु श्री राम के उनके गर्भ गृह में पुनः प्रतिष्ठित एवं स्थापित होने का आनन्दोत्सव अपने घर, मौहल्ले नगर में दीप प्रज्जवलन एवं धार्मिक आयोजन कर मनाने का आह्वान किया।
कार्यक्रम में कार्ष्णि पीठाधीश्वर गुरू शरणानन्द महाराज ने ऋषि पूजन के आयोजन के माध्यम से प्रादुर्भाव उत्सव मनाये जाने की ऋषियों के प्रादुर्भाव महोत्सव से तुलना करते हुए इस सनातन धर्म एवं परंपरा मानने वाले प्रत्येक मनुष्य मात्र के जीवन हेतु अत्यन्त आवश्यक कार्य बताया। उन्होंने कहा कि शास्त्रों के अनुसार जो भी इस धरा पर जीवन लेता है उसे तीन ऋणों का ऋणभार उतारने पर ही मुक्ति मिलती है। उन्होंने महाराज श्री को उनके जन्मदिवस पर 100 वर्ष जीने ही नहीं अपितु वेदोक्त रीति अनुसार 100 वर्षों तक जीने के संकल्प के साथ जीवन जीने की शुभकामनाएं प्रदान कीं। इस अवसर पर सप्त ऋषि कल्पों के रूप में राज जन्मभूमि आन्दोलन के प्रणेता मणिराम छावनी के श्रीमहंत नृत्य गोपाल दास महाराज के अतिरिक्त राम जन्मभूमि न्यास के कोषाध्यक्ष गोविन्ददेव गिरी महाराज, मान मन्दिर के महंत संत रमेश बाबा, अखिल भारतीय पंच राधावल्लभीय निर्माेही अखाड़ा श्री हित रासमण्डल के श्री महन्त लाड़िली शरण जी महाराज, गोरीलाल पीठाधीश्वर देवाचार्य किशोर देव दास जू महाराज, रामकुंज अयोध्या के रामानन्द दास जी एवं जगन्नाथ पुरी से पधारें श्री शुद्धानंद गिरि महाराज का पूजन मलूक पीठाधीश्वर देवाचार्य राजेन्द्र दास महाराज द्वारा किया गया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मार्गदर्शक गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानन्द महाराज ने सप्त ऋषि पूजन महोत्सव के अवसर को परंपराओं के सम्मान का शुभ अवसर बताते हुए कहा कि भगवान के द्वारा समय-समय पर ऋषियों का पूजन एवं वंदन किया गया है, यहां तक कि उनकी राय एवं आशीर्वाद के महत्व को भी स्थापित किया गया है। युगपुरुष स्वामी श्री परमानंद जी महाराज अस्वस्थ होने के कारण पूजा में सम्मिलित नही हो सके थे परंतु उन्हें सप्त ऋषि सम्मान से सुशोभित किया गया।
आयोजन के अंत में मुख्य पूजक अर्चक मलूक पीठाधीश्वर डॉ राजेन्द्र दास देवाचार्य महाराज से ऐसे विशिष्ट अतिथियों एवं वर्तमान काल के संपूर्ण भारत के प्रमुख सप्तऋषि कल्पों द्वारा इस अवसर पर अपनी महती कृपा प्रदान कर उनको पूजन करने का अवसर प्रदान किये जाने पर स्वयं को कृतज्ञ एवं उपकृत बताया। इस अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों से आए भक्तवृन्दों को भी उन्होंने परम साधुवाद देते हुए उनके प्रति भी अपनी कृतज्ञता जाहिर की। इस अवसर पर कार्यक्रम को सफल बनाने में संयोजक रसिक माधव दास महाराज, एवं मलूकपीठ के संत गंगा दास महाराज की अहम भूमिका रही। काशी से जटा वाले बाबा जी के शिष्य खेकड़ी घाट इन्दौर से पधारे छोटे सरकार, काशी में विख्यात ब्रह्मचारी दिव्य स्वरूप महाराज, धीर समीर के महंत, रसिया बाबा, कन्हैया अग्रवाल सुपाड़ी वाले सहित अनेकों संत-महंत एवं विप्र ब्राह्मण एवं तीर्थ-पुरोहित बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।