-डॉ हिदायत अहमद खान-
पिछले कुछ समय से दुनियां के शक्तिशाली देशों के हालात सही नहीं चल रहे हैं। विकसित ही क्यों विकासशील छोटे-छोटे देशों का हाल भी बुरा है। इसे आर्थिकमंदी से जोड़कर देखा जा रहा है। जनसंख्या बढ़ रही है, रोजगार कम हो रहे हैं और मंदी के चलते महंगाई चरम पर है। इस पर विकट समस्या यह है कि अधिकांश देश अपने पड़ोसी देश को दुश्मन देश मानकर हमले करने पर उतारु दिख रहे हैं। पड़ोसी देश एक-दूसरे से या तो लड़ रहे हैं या फिर लड़ने को आतुर नजर आ रहे हैं। बात कुछ भी न हो, तब भी तनातनी का माहौल बराबर बना हुआ है। यहां देखा जा सकता है कि एक तरफ रुस और यूक्रेन भिड़े हुए हैं। दूसरी तरफ हमास के हमले के बाद इजराइल अमेरिका की मेहरबानी से गाजा में फिलस्तीन से लेकर तमाम पडोसी मुल्कों से भिड़ने का दंभ भरे हुए है। हमास चीफ हानिया को ईरान में साजिशन हत्या कराए जाने के बाद मामला और बिगड़ चुका है। दुश्मनों से घिरे इजराइल को ढांढस बंधाने का काम अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडन कर तो रहे हैं, लेकिन उनकी अपनी भी तो परेशानियां हैं, क्योंकि जिस तरह से अमेरिका ने यूक्रेन को उकसाने का काम किया वैसे ही रुस भी अमेरिका के खिलाफ उत्तर कोरिया को इस संकट वाली स्थिति में खड़ा कर सकता है। ऐसा इसलिए भी कहना उचित होगा, क्योंकि उत्तर कोरिया के प्रमुख नेता किम जोंग उन ने अपनी फ्रंट लाइन आर्मी यूनिट को 250 परमाणु सक्षम मिसाइल लांचर तैनात करने के लिए उपलब्ध करा दिए हैं। यही नहीं किम जोंग उन ने तो अमेरिकी खतरे का मुकाबला करने के लिए सेना को परमाणु क्षमताओं को और बढ़ाने का संदेश देते हुए तैयार रहने को भी कह ही दिया। इस प्रकार उत्तर कोरिया का परमाणु हथियारों पर जोर देने का मकसद दक्षिण कोरियाई सीमा पर सेना को मजबूत करना तो बताया जा रहा है, लेकिन हकीकत में देखा जाए तो अमेरिका को आंख दिखाने जैसा यह काम किया गया है। इनकी तैनाती बताती है कि दक्षिण कोरिया के साथ ही अमेरिका की राहें भी अब मुश्किल होने वाली हैं। यदि इजराइल की नेतन्याहू सरकार के बचाव में अमेरिका कदम आगे बढ़ाता है तो एक महायुद्ध का बिगुल भी बज जाएगा। इससे महज गाजा और आसपास के देश ही नहीं बल्कि अन्य देशों पर भी संकट के बादल छा जाएंगे। अनेक देश तब युद्धभूमि का हिस्सा होने के तौर पर चिहिन्त किए जाएंगे। ऐसे में अमेरिका को उसके अपने घर में चुनौती देने वाली ताकतें भी फिर चुप न बैठेंगी। बहरहाल यहां हम बात बांग्लादेश के सैन्य तख्ता पलट कर करने जा रहे हैं, जहां छात्र आंदोलन ने हिंसक रुप लेकर सब कुछ तहस-नहस करने जैसा कर दिखाया है।
ऐसे माहौल में जब हम अपनी नजरें भारत और उसके तमाम पड़ोसी मुल्कों के हालात पर डालते हैं तो पाते हैं कि यहां पर भी कोई बेहतर स्थिति नहीं है। सभी अपनी घरेलु समस्याओं में उलझे हुए हैं। आर्थिक और राजनीतिक हालात भी बेहतर नहीं कहे जा सकते हैं। पाकिस्तान में तो मौजूदा सरकार की स्थिरता को लेकर ही शंकाएं विद्यमान हैं। दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी को लेकर पाकिस्तान की राजनीति आज तक गर्माई हुई है। ऐसे में बलूच मामले ने भी तूल पकड़ा हुआ है। बलूच समर्थक लोग तो पुलिस व सेना से दो-दो हाथ करने को आतुर दिखते हैं। यह मामला अभी चल ही रहा था कि बांग्लादेश से सेना का तख्ता पलट की अचानक अचंभित करने वाली खबर भी आ गई है। बांग्लादेश में आरक्षण की आग जंगल में लगी आग साबित हुई है। इस मामले को लेकर हिंसक प्रदर्शन, मौतों के बढ़ते आंकड़े और इसी बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का अपने पद से इस्तीफा दे देना। पूर्व नियोजित तो कदापी नहीं था, लेकिन देश के हालात इस कदर बिगड़े कि शेख हसीना को देश ही छोड़ देना पड़ा है। अब सेना ने देश की कमान संभाल ली है, लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं कि बहुत जल्द बांग्लादेश के हालात सुधरने जा रहे हैं। इस पूरे मामले में जमात-ए-इस्लामी को बैन करना भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है। सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक तौर पर एक शक्तिशाली संगठन होने के नाते देश की राजनीतक शतरंज में जमात-ए-इस्लामी के लीडरों का रोल अहम माना जा रहा है। ऐसे में शेख हसीना का बतौर प्रधानमंत्री वाला अध्याय भले ही क्लोज हो गया हो, लेकिन देश में सेना के इशारे पर अंतरिम सरकार कौन चलाएगा और किन मुद्दों पर किस तरह से फैसला लिया जाएगा, अभी इस पर बराबर सवाल उठते रहेंगे और जवाब के लिए समय का इंतजार करना होगा।
इन तमाम सवालों से पहले बांग्लादेश में जो घटनाक्रम घटित हुआ उसमें प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तींफा दिया। सेना की मदद से ही शेख हसीना अपनी छोटी बहन शेख रेहाना के साथ ढाका से सैन्य हेलीकॉप्टर के जरिए भारत पहुंचीं और यहां से वो लंदन रवाना होने के लिए प्रयासरत हैं। यह पहला अवसर नहीं है कि शेख हसीना को भारत में शरण लेनी पड़ी है, बल्कि इससे पहले 1975 में भी उन्होंने अपनी बहन के साथ भारत का रुख किया था। तब भारत में इंदिरा गांधी की सरकार थी जिसने उन्हें राजनीतिक शरण देने का काम किया था। तब शेख हसीना करीब 6 साल भारत में गुजारे थे। दरअसल 15 अगस्त 1975 को शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की उनके निवास पर ही बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। यह वह काला दिन था जबकि शेख हसीना के परिवार के करीब 17 लोगों की हत्या की गई थी। इस खूनी हमले से शेख हसीना और उनकी बहन इसलिए बच गईं थीं क्योंकि उस समय वो जर्मनी में थीं।
बहरहाल बांग्लादेश के एक बार फिर हालात बिगड़े हैं और इसी बीच बांग्लादेश के सेना प्रमुख वेकर उज जमान ने ऐलान किया है कि सेना ने देश की कमान संभाल ली है। इसके साथ ही उन्होंने प्रदर्शनकारियों से बातचीत का रास्ता खुले होने की बात कही है। सेना प्रमुख हर मसले का हल बातचीत से निकालने का आव्हान भी करते दिखते हैं। वो कहते हैं कि इस हिंसा और विरोध प्रदर्शन से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। उन्होंने अराजकता खत्म कर, राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने की बात भी कही। बहरहाल राजनीतिक पकड़ मजबूत करने देश को संभालने और लोगों का विश्वास जीतने उन्होंने राष्ट्रपति से चर्चा कर एक अंतरिम सरकार बनाए जाने का भी ऐलान कर दिया है। इसी बीच बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को भी रिहा कर दिया गया, जिससे राजनीतिक समीकरण बदलते नजर आए हैं।
यह समझने वाली बात है कि सेना प्रमुख जिस विश्वास के साथ कह रहे हैं कि देश में इस समय कर्फ्यू या आपातकाल लगाने की आवश्यक्ता नहीं है। रातों-रात समस्या का समाधान निकालने की बात भी की जा रही है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं यह पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को पदच्युत करने की साजिश का हिस्सा तो नहीं था, जिसमें पूरी सरकार ही फंस गई। इतिहास दोहराने जैसा काम भी यह लगता है। बहरहाल प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने पद से इस्तीफा दे चुकीं है और अंतरिम सरकार बहुत जल्द बना ली जाएगी। ऐसे में कामना की जा सकती है कि बांग्लादेश के हालात बहुत जल्द सामान्य हो जाएंगे, जो कि पड़ोसी देश के लिए भी सही ही होंगे। क्योंकि पड़ोसी मुल्क की आग सीमा पार कब कर जाए कहा नहीं जा सकता है। ऐसे में हालात पर नजर रखते हुए सतर्क रहने की आवश्यकता भी है। भारत सरकार ने सीमा पर इसका पुख्ता इंतजाम कर रखा है। इसलिए ज्यादा चिंता की बात तो नहीं है, लेकिन घुसपैठियों से निपटना वाकई एक बड़ी समस्या है, क्योंकि जब संकट में फंसे लोग जान बचाने देश छोड़ सीमा पार करते हैं तो इनकी आड़ में बड़ी संख्या में आतंकवादी भी बॉर्डर क्रॉस कर उत्पात मचाने से बाज नहीं आते हैं। यह भारत के साथ पाकिस्तान बनने से लेकर अब तक की सबसे बड़ी समस्या रही है। इस पर नकेल कसने के लिए सीमाओं पर बारीक नजर रखने और जवानों की और तैनाती करने की यदि आवश्यकता आन पड़ती है तो वह भारत सरकार को करना होगा। चूंकि अभी जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद ने फिर से सिर उठाया हुआ है, ऐसे में बांग्लादेश की समस्या भारत के लिए भी मुसीबत साबित हो सकती है। इसलिए इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यहां कहना गलत न होगा कि भारत दुनियां का एकमात्र विश्वबंधुत्व के साथ सर्वेभवन्तु सुखिन: का मंत्र फूंकने वाला देश है, जिसके प्रयासों से विश्वयुद्ध की आंशकाओं को टाला भी जा सकता है। संभवत: यही वजह है कि दुनियां के तमाम देशों की नजरें इस समय भारत पर टिकी हुई हैं।