वृंदावन। अनेक भगवद्भक्तों की जिज्ञासा रही है कि बाबा श्री प्रेमानन्द की पदयात्रा का वास्तव में विवाद है क्या? सच्चाई क्या है? क्यों सोशल मीडिया पर यह वाक युद्ध छिड़ा है। प्रस्तुत है उस विषय में वास्तविक तथ्य। पूज्य श्री प्रेमानन्द बाबा कुछ वर्षों से श्रीधाम वृन्दावन में विराजते हैं। आप श्री राधा वल्लभ सम्प्रदाय के विरक्त सन्त हैं और पूज्य श्री गौरांगीशरणजी से विरक्त-दीक्षा-प्राप्त हैं। आपका जन्म पाण्डे परिवार कानपुर का बताया जाता है। कहा जाता है कि अल्पकाल से ही आप वैराग्य और त्याग की मूर्ति रहे हैं। बहुत समय काशी में भी आपने व्यतीत किया है। सम्प्रति श्रीधाम वृन्दावन के श्री कृष्ण शरणम् सोसायटी में आप रहते हैं। आपका आश्रम इस्कॉन मन्दिर के समीपवर्ती परिक्रमा मार्ग में वाराह घाट पर ‘केलिकुंज’ के नाम से है। जहा वे सत्संग करते हैं। छोटे-छोटे सूत्रों और भक्तिपरक सरल-उपदेशों के माध्यम से वे प्रवचन करते हैं। श्रीराधा रानी के अनन्य भक्त होने के कारण श्रीराधा नाम का आपने बहुत प्रचार किया जिससे सम्पूर्ण विश्व में उनकी ख्याति हुई है। अनेक यू-ट्यूबर्स और शिष्यों के द्वारा सोशल मीडिया पर अत्याधिक प्रचार के चलते वे समय-समय पर विवादों में घिर जाते हैं। हाल में ही स्थानीय निवासियों द्वारा उनकी पदयात्रा का घोर विरोध किया गया। उनकी पदयात्रा रात्रि में 2 बजे श्रीकृष्ण शरणम् से प्रारम्भ होती है जो केलिकुंज तक प्रायः दो घण्टे में पहुँचती है। उसके बाद आश्रम में उनका सत्संग होता है। इस यात्रा में वे स्वयं कार में होते हैं। विदेशी महंगी कारों का काफिला तथा उनके शिष्य पैदल की रफ़्तार से चलते हैं। सड़क के बायें-दायें अनेक भक्त उनके दर्शनार्थ खड़े होते हैं जिन्हें संयमित करने के लिए उनके अनेक शिष्य रस्सियों के द्वारा मार्ग अवरोध करते हैं जिससे कोई भी भक्त महाराजजी तक नहीं पहुंच पाये। आश्रम की कुछ दूरी से बाबा पैदल चलते हैं।
रेखांकित करने वाली मुख्य बात यह है कि इस यात्रा में ढोल-नगाड़े, बैण्ड-बाजा, आतिशबाजी, दस-बीस वीडियोग्राफर और यू-ट्यूबर, उनके शिष्यों द्वारा हुए सड़क घेराव के बीच में चलते हैं। अर्ध रात्रि में इस नियमित शोर-शराबे के कारण मार्ग के निवासियों को काफी असुविधा और शयन में बाधा अनुभव होती है। जिस कारण स्थानीय निवासियों का गुस्सा फूट पड़ा और सुनरख रोड स्थित एनआरआई ग्रीन के निवासियों द्वारा अपना विरोध दर्ज कराया गया। अर्धरात्रि निकलने वाली प्रतिदिन की यात्रा में उन्होंने व्यवधान किया और बाबा को पोस्टर दिखाते हुए मांग की कि यह बैण्ड-बाजा, अतिशबाजी, शोरगुल बन्द हो क्योंकि स्कूली बच्चे एवं नौकरी वाले लोग इस शोरगुल के कारण ठीक से सो नहीं पाते। मार्ग अवरुह् होने से वाहनों का आना-जाना भी बन्द हो जाता है। कहा जाता है कि दूसरे-तीसरे दिन यात्रा का मार्ग बदल गया। शान्ति से यात्रा निकाली गई किन्तु आधिकारिक तौर पर यह सूचना प्रसारित की गई कि यात्रा अनिश्चितकाल के लिये बन्द की जाती है। अब यहां से सोशल मीडिया विशेषकर फेसबुक पर दोनों पक्षों में जमकर बयानबाजी हुई। स्थानीय ब्रजवासियों ने सभाएं कर इस शोरगुल को बन्द करने की आवाज उठाई और बाबा के भक्तों ने यह आरोप लगाया कि ब्रजवासी व स्थानीय निवासी राधा नाम का और बाबा का विरोध कर रहे हैं जबकि सत्य यह है कि स्थानीय निवासियों ने न तो राधा नाम का, न यात्रा का और न ही बाबा का विरोध किया। विरोध केवल शोरगुल बन्द होने तथा सरकारी रोड को अवरूद किये जाने का था। बाहर के तमाम निवासियों ने सत्य को जाने बिना ब्रजवासियों के प्रति अपशब्द लिखे और अपराध किया। जवाब में ब्रजवासियों ने भी उन्हें खूब लताड़ा। बागेश्वर धाम के प्रसिह् बाबा धीरेन्द्र शास्त्री ने भी आवेश में गलत बयानबाजी करते हुए एक वीडियो जारी किया जिसमें उनके शब्द थे जो बाबा की पदयात्रा और राधा नाम का विरोध करते हैं वे दानव हैं वे यहां से बाहर दिल्ली-मुम्बई चले जायेंगे इस बयान ने ब्रजवासियों और स्थानीय निवासियों को आहत किया ही, दिल्ली और मुम्बई के निवासियों ने भी आपत्ति दर्ज की कि किया हम लोग दानव हैं? दिल्ली-मुम्बई में क्या भक्तिमान लोग नहीं रहते हैं? इत्यादि। स्थानीय अखिल भारतीय ब्राह्मण महासंघ और पंडा सभा की ओर से आहूत एक विशाल सभा में बागेश्वर धाम सरकार के प्रति रोष व्यक्त करते हुए उनके द्वारा माफी की मांग की। बीती 15 फरवरी को धीरेन्द्र शास्त्री जी का एक वीडियो पुनः जारी हुआ जिसमें उन्होंने कहा कि मैंने ब्रजवासियों के लिए नहीं अपितु यह कहा कि जो निवासी बाहर से आकर यहां रहते हैं वो चले जायें। और खेद व्यक्त करते हुए उन्होंने ब्रजवासियों का गुणगान किया। मामला कुछ शान्त हुआ और महासंघ के कार्यकर्ताओं ने धीरेन्द्र शास्त्री की क्लिप डालते हुए लिखा कि उन्होंने माफी मांग ली है-अब बात समाप्त की जाय। धीरेन्द्र शास्त्री के अपनों ने ‘माफी’ शब्द पर भी आपत्ति की और कहा कि उनके वक्तव्य में माफी शब्द नहीं है। उन्होंने मात्र अपने पूर्व बयान का स्पष्टीकरण दिया है। पुनः वाक युद्ध शुरु हुआ और जिसके मन जो आया वह लिखता चला गया। वास्तविकता में धीरेन्द्र शास्त्री ने जो स्पष्टीकरण दिया था भले ही उसमें ‘माफी’ शब्द न हो फिर भी भाव क्षमा का ही था। परन्तु ऐसे समय में आगे-पीछे की कटुता, वैमनस्य और एक दूसरे को नीचा दिखाने का अवसर किसी ने नहीं छोड़ा।
अनेक लेखक और कथा-व्यासों ने इसे साम्प्रदायिक-विवाद कहकर प्रस्तुत किया, कुछ ने प्रचार-स्टंट कहा। अनेक ने इसे भू-माफियाओं से संबद्ध बताया तो कुछ ने बाबा के चेलाओं की गुण्डागर्दी बताया। कुल मिलाकर ये भयंकर वाक युद्ध 8/10 दिन चला जिससे सभी भक्तिमान सज्जन दुखित हुए। विरोध किसी और बात का था प्रस्तुत कुछ और किया गया। मैं दावे के साथ कहता हूँ कि ब्रजवासी न तो कभी राधा नाम का विरोध कर सकते हैं न ही किसी सन्त का अपमान कर सकते हैं। इतिहास गवाह है कि ब्रज-वृन्दावन में जो भी जिस स्तर का भी कोई सन्त, भक्त, वेशधारी या सामान्यजन भी आया है, हम ब्रजवासियों ने उसे सर-आँखों पर बैठाया है, चाहे वह प्रभुपाद श्रीभक्तिवेदान्त हों श्रीअखण्डानन्दजी हों, श्रीउड़िया बाबा हों श्रीकरपात्रीजी और श्रीवामदेव महाराज हों। ब्रजवासियों ने न तो किसी की सम्प्रदाय देखी न ही उसका आचरण देखा। देखा तो केवल उनकी भक्ति देखी। अपने लाला-लाली श्रीराधा कृष्ण के प्रति उनका भाव देखा, उनका समर्पण देखा और हरसम्भव उनकी स्थापना में उनके उत्कर्ष में उनकी भाव- वृद्धि में तन-मन से सहयोग किया। उदाहरण देखिए 16 फरवरी को एक वीडियो क्लिप फेसबुक पर फिर से आया जिसमें एनआरआई ग्रीन सोसायटी के अध्यक्ष ब्रजवासी बालक बाबा के पास गये और उन्होंने कष्ट होने पर भी क्षमा मांग कर बाबा से पुनः उसी मार्ग से पदयात्रा ले जाने का निवेदन किया। जबकि विरोध की पहली क्लिप उन्हीं की थी। सन्त के प्रति लोगों द्वारा अपराध न हो इसलिए वे पलट गए। बाबा ने भी ब्रजवासियों के प्रति अपने वही श्रेष्ठ भाव व्यक्त करते हुए किसी को कष्ट न पहुंचने की बात कही और इस घटना का पटाक्षेप हुआ। बाबा के विषय में जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है किन्तु कुछ तथ्य मतान्तर होने से आडम्बरपूर्ण लगते हैं जिनके कारण बाबा हमेशा विवादों में रहते हैं और स्थानीय ब्रजवासी इस आडम्बर को स्वीकार न कर पाने से तो उनका आदर-सम्मान करते हैं किन्तु ह्रदय में उनके प्रति सच्चा प्रेम-भाव या श्रद्धा अथवा पूज्य-भाव नहीं रखते।
1. अर्धरात्रि शयन के समय शोरगुल सहित पदयात्रा। ब्रज में कहा जाता है कि जब बिहारीजी, राधावल्लभजी, राधारमणजी की शयन आरती हो गई तो वृन्दावन शान्त। लता-पताएं-वृक्ष-यमुना सबको रात्रि-शयन में बाधा न हो यह भक्तों का भाव है। और कोई एक-दो दिन हो तो सहनीय है। प्रतिदिन अर्धरात्रि 2 बजे से 4 बजे तक शोरगुल असहनीय है।
2. यात्रा के समय मार्ग रोकना करना। कोई रोगी हो अथवा किसी के घर हारी-बीमारी, इमरजेंसी हो तो उस यात्रा-मार्ग से वाहन निकालना असंभव होता है। भगवान् न करे परन्तु देर होने से रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।
3. बाबा के कुछ शिष्य अवश्य सन्त वेश धारण किऐ हुए हैं किन्तु वे उद्दण्ड हैं। दर्शनार्थियों और राहगीरों के प्रति उनका दुर्व्यवहार है। सोशल मीडिया पर भद्दी गालिया तक वे लिखते हैं।
4. जिन पुष्पों को ठाकुरजी सेवा में उपयोग किया जाना चाहिए और जिस रंगोली की ब्रज में ‘साएचौ देव’ कहकर स मानपूर्वक पूजा की जाती है उनको रौंदते हुए उन पर चलना और वह भी नंगे पाए हीं स्पोर्ट्स शूज पहनकरμयह ब्रजवासियों को बहुत आहत करता है।
5. भक्ति एकान्त का विषय है। सन्तों ने जंगलों में, गुफाओं में रहकर भजन किया है फिर अच्छे सन्त के लिए यह प्रदर्शन क्यों? आडम्बर क्यों? यू-ट्यूबर्स और मीडिया टीम के सैंकड़ों कर्मचारी क्यों? वैराग्यशील सन्त के लिए ऑडी, मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू जैसी करोड़ों की कारें क्यों? पदयात्रा शब्द तो पैदल चलने का नाम है। कार में कैसी पदयात्रा?
6. सर्वसमर्थ होने पर भी ब्रज के लिये, यमुना शुद्धि के लिये, स्वच्छता के लिये, परिक्रमा मार्ग के लिये बाबा का किसी प्रकार का कोई योगदान न होने से भी ब्रजवासियों में रोष रहता है।
7. बड़ी-बड़ी हस्तियों को आग्रहपूर्वक बुलाया जाता है किन्तु ब्रजवासियों को या लोकल भक्तों को एक-दो दिन पूर्व नंबर लगाकर अपॉइंटमेंट लेना होता है-बाबा से मिलने के लिये।
8. ब्रज में, ब्रजवासियों द्वारा सूतक-पातक और सूर्य चंद्र ग्रहण-विचार का पालन किया जाता है तथा एकादशी व्रत सभी व्रतों में श्रेतम स्वीत है। श्रीमद्भागवत में नन्दबाबा, राजा अंबरीश इत्यादि द्वारा एकादशी व्रत का पालन करने का वर्णन है। पूज्य बाबा द्वारा इन सबको सिरे से खारिज कर देना ब्रजजनोंको भ्रमित करने वाला और आस्था को डगमगाने वाला है।
9. कथनी और करनी में विपरीता है। ब्रजवासियों को खूब सम्मान देकर बोलना, भगवत् स्वरूप कहना परन्तु समीप पहुचने पर न उन्हें उच्च आसन देना, न स्वयं अपने स्थान से हिलना तथा उनसे दण्डवत् प्रणाम स्वीकार करना आदि ये सब आचरण कथनी से भिन्न होते हैं।
-मोहन स्वरूप भाटिया वरिष्ठ पत्रकार मथुरा।