सुप्रीम कोर्ट ने हर निजी सम्पत्ति पर सरकार कब्जा नहीं कर सकती वाला राह दिखाने वाला फैसला देकर जहां निजी सम्पत्ति धारकों के अधिकारों की रक्षा की है, वही अर्थ-व्यवस्था को तीव्र गति देने के धरातल को मजबूत बनाया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने जाहिर किया है कि निजी संपत्ति के भी अपने अधिकार हैं, जिसकी अवहेलना नहीं की जा सकती। अब सरकारों यानी नीति निर्माताओं को भूमि अधिग्रहण और अन्य निजी संपत्ति अधिग्रहण करने के लिए अधिक न्यायसंगत और पारदर्शी रूपरेखा बनानी होगी। नया फैसला अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है और आदर्श शासन एवं न्याय व्यवस्था का द्योतक है। यह फैसला केवल इसलिए ऐतिहासिक नहीं है कि यह नौ सदस्यीय संविधान पीठ की ओर से दिया गया, बल्कि इसलिए भी अनूठा है, क्योंकि इसने उस समाजवादी विचार को आईना दिखाया, जिसे सरकारों की रीति-नीति का अनिवार्य अंग बनाने का दबाव रहता था। स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन समाजवादी और वामपंथी सोच वालों के लिए भी झटका है, जो यह माहौल बनाने में लगे हुए थे कि देश में गरीबी और असमानता तभी दूर हो सकती है, जब सरकार संपत्ति का पुनर्वितरण करने में सक्षम हो और उसे यह अधिकार मिले कि वह किसी की भी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है।
ताजा फैसले में कहा है कि किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाले प्रत्येक संसाधन को केवल इसलिए समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता क्योंकि वह भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। कोर्ट ने कहा कि किसी निजी स्वामित्व वाली संपत्ति को समुदाय के भौतिक संसाधन के योग्य मानने के पहले उसे कुछ कठोर परीक्षणों को पूरा करना होगा। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या करते हुए कहा कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत आने वाले संसाधन के बारे में जांच कुछ विशेष चीजों पर आधारित होनी चाहिए। इसमें संसाधनों की प्रकृति, विशेषताएं, समुदाय की भलाई पर संसाधन का प्रभाव, संसाधनों की कमी तथा ऐसे संसाधनों के निजी हाथों में केंद्रित होने के परिणाम जैसे कारक हो सकते हैं। इसके लिये पहचान एवं परीक्षण अपेक्षित होगी। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा विकसित पब्लिक ट्रस्ट के सिद्धांत भी उन संसाधनों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं जो समुदाय के भौतिक संसाधन के दायरे में आते हैं। ऐतिहासिक रूप से भारत में भूमि अधिग्रहण अक्सर विवादास्पद रहा है, जिसमें औद्योगिक परियोजनाओं या बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बड़े पैमाने पर अधिग्रहण से महत्वपूर्ण विरोध प्रदर्शन हुए हैं। सिंगूर और नंदीग्राम जैसे मामलों ने सरकारी अधिग्रहण के खिलाफ भूमि मालिकों और किसानों के प्रतिरोध को उजागर किया। सर्वाेच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि निजी संपत्ति का अधिकार एक मानवाधिकार माना जाता है। इसलिये राज्य के लिये किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है।
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने 1978 में दिए गए अपने ही फ़ैसले को पलट कर न केवल जनहित की रक्षा की है बल्कि कानून की एक बड़ी कमी को सुधारा है।