वाशिंगटन । अमेरिका के ट्रंप प्रशासन में खुफिया विभाग की निदेशक तुलसी गबार्ड ने स्वीकार किया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने दशकों तक दूसरे देशों में हस्तक्षेप कर वहां की सरकारें गिराने और सत्ता परिवर्तन कराने की नीति अपनाई थी। उन्होंने कहा कि इस नीति ने न केवल वैश्विक स्थिरता को नुकसान पहुंचाया, बल्कि अमेरिका के विरोधियों की संख्या भी बढ़ा दी। गबार्ड ने इसे अमेरिकी विदेश नीति की सबसे बड़ी भूल करार दिया और आईएसआईएस तथा अलकायदा जैसे संगठनों के उभार को इसी नीति का प्रत्यक्ष परिणाम बताया।
बहरीन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सामरिक अध्ययन संस्थान (आईआईएसएस) के मनामा डायलॉग सम्मेलन में बोलते हुए गबार्ड ने कहा, “कई दशकों से हमारी विदेश नीति एक ऐसे अंतहीन चक्र में फंसी रही, जिसमें हम दूसरे देशों की सरकारें गिराने और वहां अपनी राजनीतिक व्यवस्था थोपने की कोशिश करते रहे। यह नीति बार-बार वाशिंगटन पर ही उलटी पड़ती रही और हमें सहयोगियों की बजाय अधिक दुश्मन मिलते गए।”
गबार्ड ने स्पष्ट किया कि इस नीति ने न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि मानव जीवन की दृष्टि से भी भारी क्षति पहुंचाई। उन्होंने कहा, “इन सत्ता परिवर्तनों की कीमत अनगिनत जानों से चुकाई गई। कई क्षेत्रों में तो इन हस्तक्षेपों ने पहले से अधिक असुरक्षा और अराजकता पैदा कर दी।”
तुलसी गबार्ड ने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी विदेश नीति में बड़ा परिवर्तन आया है। उन्होंने बताया कि अब अमेरिका का ध्यान लोकतंत्र के प्रसार की बजाय वैश्विक आर्थिक समृद्धि और क्षेत्रीय स्थिरता पर केंद्रित किया गया है। गबार्ड ने कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप के नेतृत्व में हमने हस्तक्षेप की पुरानी नीति को समाप्त किया है। अब हमारा उद्देश्य युद्ध नहीं, बल्कि शांति और सहयोग को बढ़ावा देना है।”
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि गाजा संघर्ष के दौरान ट्रंप प्रशासन की नीतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गबार्ड ने दावा किया कि अमेरिका की सक्रिय कूटनीतिक पहल और ईरान के परमाणु ठिकानों पर निर्णायक कार्रवाई के कारण इज़रायल-ईरान संघर्ष को समाप्त करने में मदद मिली।
गबार्ड ने चेताया कि गाजा में युद्धविराम के बावजूद हालात अभी भी नाजुक बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि चीन की क्षेत्रीय गतिविधियां और ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा अब भी वैश्विक शांति के लिए बड़ी चुनौती हैं। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए गबार्ड ने कहा, “ईरान की परमाणु सुविधाओं में बढ़ती गतिविधि भविष्य के नए खतरों की ओर संकेत करती है। हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप इस स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।” यह पहली बार नहीं है जब तुलसी गबार्ड ने अमेरिका की ‘हस्तक्षेपवादी नीति’ की आलोचना की है। 2020 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान भी उन्होंने अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेपों को “अनावश्यक युद्धों का जाल” बताया था। गबार्ड ने हमेशा से यह तर्क दिया है कि दूसरे देशों में सरकारें गिराने से अमेरिका की साख और सुरक्षा दोनों को गहरा आघात पहुंचता है। दूसरी ओर, राष्ट्रपति ट्रंप ने भी अपने कार्यकाल में अमेरिकी “डीप स्टेट” और पुरानी नीतियों की आलोचना करते हुए कहा था कि अमेरिका को अब अपनी सीमाओं और हितों की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि दुनिया भर में सत्ता परिवर्तन की राजनीति करने पर।
तुलसी गबार्ड का यह स्वीकारोक्ति अमेरिकी विदेश नीति की दशकों पुरानी परंपरा पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है और इस बहस को एक बार फिर जीवित कर देती है कि क्या अमेरिका की “वैश्विक हस्तक्षेप” की नीति वास्तव में उसके हितों के लिए फायदेमंद रही या आत्मघाती सिद्ध हुई।
















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