नई दिल्ली । जम्मू-कश्मीर के बारामूला से निर्दलीय सांसद इंजीनियर रशीद को संसद के मॉनसून सत्र में शामिल होने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट से इजाजत मिली है। इसके बाद वे मंगलवार को अचानक से भरी संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर चल रही चर्चा में बीच में खड़े होकर लोकसभा स्पीकर से बोलने का समय देने की मांग करने लगे। उन्होंने चिल्लाकर कहा कि वह डेढ़ लाख रुपये एक दिन का देकर वहां आए हैं और उन्हें बोलने दिया जाए। हालांकि, उस समय शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे बोल रहे थे, इसलिए इंजीनियर रशीद को बोलने का मौका नहीं मिला, लेकिन बाद में उन्होंने संसद में अपनी बात रखी।
अचानक बीच में खड़े होकर और वेल के करीब पहुंचकर निर्दलीय सांसद शेख अब्दुल रशीद ने कहा, ”एक दिन का ढेढ़ लाख रुपये देकर आया हूं। मुझे बोलने दीजिए, मैं कश्मीरी हूं। ऑपरेशन सिंदूर मेरे इलाके में लड़ा गया।” स्पीकर ओम बिरला ने रशीद को वापस बैठने के लिए कहा और फिर कुछ समय बाद इंजीनियर रशीद को उनकी बात रखने का अवसर दिया गया। उन्होंने कहा कि पहलगाम हमला मानवता पर एक कलंक है। सरकार का यह दावा कि घाटी में सब कुछ सामान्य है, केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित है। उन्होंने कहा, ”हम लाशें ढोते-ढोते थक गए हैं।”
रशीद ने पूछा कि आतंकवाद के खिलाफ भारत का संदेश दुनिया में देने के लिए विभिन्न देशों में भेजे गए सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में कश्मीर के कितने सदस्य थे। उन्होंने कहा, ”पहलगाम में जो भी हुआ, वह पूरी इंसानियत का कत्ल था। जब निंदा की बात आए तो हम कश्मीरियों से ज्यादा कौन पहलगाम के उस परिवार का दर्द समझ सकता है जो हम लोगों ने पिछले कुछ दशकों में खो दिए हैं। कश्मीर ने जितनी तबाही देखी है। लाशें उठाते उठाते थक गए हैं। हर लोग कहते हैं कि वे आतंकी कहा गए, एलजी साहब क्या कर रहे थे। कश्मीरियों के दिल जीतने होंगे, लेकिन संसद में किसी ने भी कश्मीरियों की बात नहीं की।”
निर्दलीय सांसद ने आगे कहा, ”आपको कश्मीर के लोग चाहिए या फिर उनकी जमीन चाहिए। इसका फैसला लेना होगा। हर कोई ट्रंप की बात कर रहा है। ट्रंप के पास कश्मीर मसले का हल नहीं है, बल्कि वहां के लोगों, हिंदुओं, मुस्लिमों के पास है। वहां के पास समुदाय के पास है। यह एक पॉलिटिकल मुद्दा है। मैं डेढ़ लाख रुपये देकर यहां आया हूं, लेकिन जब आप मेरे लिए नहीं बोल सके कश्मीरियों के लिए क्या बोलेंगे? हिंदू राष्ट्र बनाने की बहुत जल्दी है, शौक से बनाओ, लेकिन जम्मू कश्मीर के डेमोग्राफी को टच मत करिए, कल्चर के साथ छेड़छाड़ मत करिए और उसे जम्मू-कश्मीर ही रहने दीजिए।”