भारत की नई, ताजा और अद्यतन जनगणना की शुरुआत होने वाली है। केंद्र सरकार शीघ्र ही औपचारिक घोषणा करेगी और पूरा कार्यक्रम देश के सामने रखेगी। 2011 की जनगणना के बाद अब यह कवायद की जाएगी। नियम रहा है कि हर 10 साल के बाद जनगणना कराई जाएगी, लेकिन कोरोना वैश्विक महामारी के कारण 2021 की जनगणना नहीं की जा सकी। अब भारत दुनिया के उन तीन देशों में एक है, जहां नई जनगणना का सम्यक कार्यक्रम अभी घोषित किया जाना है। ऐसा ‘यूएन पॉपुलेशन फंड’ के ‘ग्लोबल सेंसस टै्रकर’ का दावा है। बेशक कोरोना ने वैश्विक स्तर पर लगभग सभी देशों को खूब प्रभावित किया, नतीजतन वे जनगणना समेत कई अभियान नहीं चला पाए, लेकिन उन्होंने महामारी से उबर कर जनगणना के अपने कार्यक्रम भी घोषित किए और जनगणना की प्रक्रियाएं भी शुरू हो चुकी हैं। भारत भी 2021 के अंत तक आते-आते कोरोना से लगभग मुक्त हो चुका था, लेकिन जनगणना की शुरुआत क्यों नहीं की गई, इसका सटीक जवाब भारत सरकार ही दे सकती है। चूंकि भारत में जनगणना नहीं हो सकी, लिहाजा नया डाटा प्राप्त नहीं है, नतीजतन ‘जातीय जनगणना’ का राजनीतिक नेरेटिव सामने आया है। हालांकि दोनों में तुलना नहीं की जा सकती। वैसे भी राज्य जनगणना के लिए अधिकृत नहीं है। यह दायित्व केंद्र सरकार का ही है। बहरहाल अब जनगणना की प्रक्रिया शुरू होने वाली है, तो उसे डिजिटल तरीके से भी किया जाए। नागरिकों को स्व-गणना और स्व-सत्यापन का अधिकार दिया जाए और जनगणना का परंपरागत तरीका भी इस्तेमाल किया जाए। इससे डाटा स्पष्ट, सुगम और यथाशीघ्र उपलब्ध होगा और क्रॉस चेकिंग भी की जा सकेगी। हालांकि जनगणना का अधिकृत फैसला लिया जा चुका है, लेकिन अब भी तय नहीं है कि उसका डाटा कब तक सार्वजनिक रूप से जारी किया जाएगा। अतीत में जनगणना के प्रथम चरण के सम्पन्न होने में ही करीब 11 माह का वक्त लगा था। भारत में जनगणना की प्रक्रिया बेहद जटिल, पेचीदा और व्यापक है, क्योंकि राज्य और केंद्र शासित क्षेत्र 35 से अधिक हैं और कुल आबादी 145 करोड़ को छू रही होगी! बहरहाल नई, ताजा जनगणना बेहद जरूरी है, क्योंकि वह ही सभी आकलन, विश्लेषण और सर्वेक्षणों की कसौटी है।
अभी तक हम 2011 की जनगणना की गिरफ्त में हैं। यदि उसी के आधार पर भारत की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का मूल्यांकन करना है, तो निष्कर्ष गलत आएगा। बीते 13 सालों में भारत बिल्कुल बदल चुका है। आज वह विश्व की महाशक्तियों में शामिल है और दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 2011 की जनगणना के पुराने डाटा के भरोसे ही स्वास्थ्य, जनसंख्या और आर्थिकी के डाटा भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। यही नहीं, एनएसएसओ समेत अन्य एजेंसियों के सर्वेक्षणों की गुणवत्ता भी गलत साबित हुई है। एक उदाहरण ही पर्याप्त है। यह अनुमान है कि करीब 11 करोड़ भारतीयों को ‘खाद्य सुरक्षा कानून’ के लाभ नहीं मिल पा रहे हैं। हालांकि 2011 की जनगणना के तहत लाभार्थियों की संख्या तब भी गिनी जा रही थी। संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन भी जनगणना पर ही आधारित है। परिसीमन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। संसद ने ‘महिला आरक्षण बिल’ पारित किया था, लेकिन वह तभी लागू किया जा सकेगा, जब परिसीमन हो जाएगा और संसद की सीटें बढ़ा दी जाएंगी। परिसीमन तभी होगा, जब जनगणना के अद्यतन आंकड़े उपलब्ध होंगे। ‘जातीय जनगणना’ का मुद्दा भी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसने 2024 के आम चुनाव में, कुछ राज्यों में, मतदान को प्रभावित किया था। जाति के साथ आरक्षण भी जुड़ा है। सिर्फ सरकारी नौकरियों में आरक्षण देकर यह मुद्दा शांत नहीं किया जा सकता, क्योंकि हर साल औसतन 70-80 लाख युवा भारतीय श्रम-बाजार में आते हैं। हमें निजी क्षेत्र में भी रोजगार मुहैया कराने की जरूरत है, ताकि यह संकट कम होता जाए। उसके मद्देनजर केंद्र सरकार को ‘जातीय जनगणना’ के प्रति भी ‘खुला’ होना पड़ेगा और अपने रुख में बदलाव लाना होगा। बहरहाल जनगणना की अच्छी, सुखद खबर आई है, तो उसका स्वागत है, लेकिन अब सरकार को किसी बहाने की आड़ में छिप कर जनगणना को टालना नहीं चाहिए। सच्चाई यह है कि हमारे पास भावी योजनाएं बनाने के लिए किसी तरह का डाटा उपलब्ध नहीं था। हम 2011 की जनगणना और उसमें एकत्र किए गए डाटा का उपयोग कर रहे थे, जो एक तरह से अप्रासंगिक हो गया था।