नई दिल्ली। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने शनिवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से कहा, यह विनाशकारी संकट से निपटने का समय है, लेकिन विभाग की ओर से कोविड-19 महामारी की लहर से लड़ने में दिखाई जा रही चरम सुस्ती और की जा रहीं अनुचित कार्रवाइयां हैरान करने वाली हैं। एसोसिएशन ने कहा कि यह देखने आया है कि आईएमए और अन्य योग्य पेशेवर सहयोगियों द्वारा सामूहिक चेतना की अपील, सक्रिय संज्ञान और अनुरोधों को ‘कूड़ेदान’ में डाल दिया जाता है और फैसले ‘जमीनी हकीकत को समझे बिना’ लिए जाते हैं।
आईएमए के एक बयान में कहा गया है, पिछले 20 दिनों में, भले ही कुछ राज्यों द्वारा 10 से 15 दिनों के लिए लॉकडाउन की घोषणा की गई है, मगर एसोसिएशन इसके बजाय सुनियोजित, पूर्व-घोषित पूर्ण रूप से राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाने की जरूरत पर जोर दे रही है। पूर्व-घोषित इसलिए कि स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने, सामग्री और जनशक्ति जुटाने के लिए थोड़ा वक्त मिल सके।
भारत में डॉक्टरों के आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा प्रणाली के राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन आईएमए ने कहा, “लॉकडाउन विनाशकारी फैलाव की श्रृंखला को तोड़ देगा।”
हालांकि, यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार ने लॉकडाउन को लागू करने से इनकार कर दिया, नतीजतन हर दिन चार लाख से अधिक नए मरीज बढ़ते गए और मध्यम से गंभीर मामलों की संख्या लगभग 40 प्रतिशत तक बढ़ रही है।
यह जिक्र करते हुए कि ‘छिटपुट रात के कर्फ्यू ने कोई अच्छा परिणाम नहीं दिया है’, आईएमए ने जोर देकर कहा, “जीवन अर्थव्यवस्था की तुलना में ज्यादा कीमती है।”
आईएमए ने कहा, “नींद से जागिए और कोविड महामारी में बढ़ती चुनौतियों को कम करने के लिए हरकत दिखाइए।”
आईएमए द्वारा 6 अप्रैल से वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए न्यायसंगत, सुलभ और सस्ते टीकाकरण की मांग की गई थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश को लगातार आश्वस्त किए जाने के बाद टीकाकरण अभियान 1 मई से शुरू किया गया।
आईएमए ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है, मंत्रालय आवश्यक रोडमैप बनाने और वैक्सीन स्टॉक सुनिश्चित करने में विफल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण नहीं हो सका है।”
डॉक्टरों के संगठन ने कहा, “जब प्रधानमंत्री की अधिसूचना को स्पष्ट रूप से लागू नहीं किया जाता है, तो किसे दोषी ठहराया जाए?”
आईएमएए ने कोविड वैक्सीन मूल्य निर्धारण की विभेदक प्रणाली को ‘अमानवीय’ मानते हुए कहा कि 18 से 45 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों को 50 प्रतिशत के केंद्रीय हिस्से से मुफ्त टीकाकरण करने की मनाही है और उन्हें राज्य सरकारों की दया के तहत रखा गया है।
संगठन ने कहा, “मूल्य निर्धारण और स्टॉक के लिए निमार्ताओं के साथ बातचीत करने के लिए निजी चिकित्सकों और राज्यों को कहे जाने की वजह से मूल्यवृद्धि और वैक्सीन की कमी हुई।”
आईएमए ने 1997 और 2014 में चेचक और पोलियो के उन्मूलन के लिए किए गए टीकाकरण का उदाहरण देते हुए कहा कि यह केवल सार्वभौमिक मुक्त टीकाकरण को अपनाने से संभव है, अंतर मूल्य निर्धारण प्रणाली से नहीं।
आईएमए ने कहा कि जब बजट में 35,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, तो उससे अधिकतम 200 करोड़ वैक्सीन दर्जन खरीदे जा सकते हैं।
आईएमए ने कहा, “केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी को क्यों अलग कर रही है?”
आईएमए ने कहा, “आज पिछले सात दिनों से छोटे और मध्यम स्तर के निजी अस्पतालों में कोई टीका उपलब्ध नहीं है।”
संगठन ने कहा, “ऑक्सीजन का संकट हर दिन गहराता जा रहा है और ऑक्सीजन की बेमेल आपूर्ति के कारण लोगों के मरने का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है और यह मरीजों और बिरादरी दोनों के बीच दहशत पैदा कर रहा है। हालांकि, पर्याप्त उत्पादन हो रहा है, मगर वितरण उचित तरीक से नहीं हो रहा है।”