मथुरा। प्रभु कृपा बिन सच्चे संतों का सानिध्य वउनकी कृपा संभव नहीं। उक्त विचार मंडी रामदास गली गंगादयाल में आयोजित हुई भागवत कथा के विश्राम दिवस पर व्यास पीठ से संत गोविंददास महाराज ने व्यक्त किए।
रुक्मिणी विवाह प्रसंग कृष्ण–सुदामा लीला पर प्रवचन करते हुए कहा कि संत सेवा से ही रुक्मिणी जी को श्रीकृष्ण से मिलना संभव हुआ। “मन लाग्यो यार फकीरी में” भजन की मीमांसा कर व्यास जी ने बताया कि छोटा बनकर जी ने में बड़ा आनंद है जैसे आंधी–तूफान आने पर बड़े से बड़े वृक्ष गिर जाते हैं पर घास जस की तस रहती है। सुदामा जी अभावों में भी प्रसन्न रहते थे। “श्रीराधा–कृष्ण मुरारी कब लोगे खबर हमारी” भजन पर कृष्ण रूप में कु. रिद्धि, रुक्मिणी स्वरूप में कु. माधवी व सुदामा बनी कु. सिद्धि ने अपने अप्रितम अभिनय से श्रोता–दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया।
भक्तों ने उनकी आरती कर उपहार दिए। महाराज जी ने अपेक्षाएं करने को दु:खों का कारण बताया व कहा कि तन से कुछ भी करो पर मन से प्रभु के शरणागत रहो। प्रभु नाम संकीर्तन ही भागवत कथा का सार है। मुख्य यजमान रजनी–उमेश सोनी, नीरू–मुकेश सोनी, मंजू–प्रेम, पिंकी–शिवम व ज्योति–चिराग वर्मा ने व्यास पीठ का पूजन–हवनकर पूर्णाहुति दी।ब्राह्मण भोज व भंडारे के साथ भागवत कथा का विश्राम हुआ।