दिनेश सिंह तरकर
मथुरा। कान्हा की नगरी में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरूआत पहले दिन नहाय-खाय के साथ होती है, नहाय-खाय वाले दिन महिलाएं छठी मैया के प्रसाद के लिए गेहूं को धोकर सुखाती हैं। इस गेहूं की सफाई से लेकर गेहूं को सूखने तक यह विधि किसी साधना से कम नही है, व्रती महिलाएं गेहूं को सुखाते समय पूरा ख्याल रखती हैं ताकि किसी भी तरह से यह गेहूं अशुद्ध न हो सके, कोई पशु या पक्षी गेहूं को जूठा न कर दे। साथ ही व्रती महिलाएं गेहूं सुखाते समय छठी मैया व भगवान भास्कर के मधुर गीत भी गाती हैं। सूखे हुए गेहूं को अगले दिन आटा चक्की को धुलवाकर गेहूं पिसवाया जाता है, इसी गेहूं के आटे से ही भगवान भास्कर का प्रसाद बनेगा।
सनातन पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है।
इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अगले दिन उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है। इसके अगले दिन खरना मनाया जाता है। इस दिन व्रती दिनभर उपवास कर शाम में पूजा करने के पश्चात प्रसाद ग्रहण करती हैं। इसके पश्चात लगातार 36 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं। सनातन धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व है। महाभारत काल में द्रौपदी भी छठ पूजा करती थीं। धार्मिक मान्यता है कि छठ पूजा करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। वर्तमान समय में छठ पूजा का महापर्व बिहार समेत देश विदेश में मनाया जाता है।