पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने एक मानवीय, लैंगिक, प्राकृतिक संबंधों की व्याख्या का मामला है। एक दर्जन से अधिक याचिकाएं विचाराधीन हैं, जिनमें समलैंगिक संबंधों को ‘कानूनी मान्यता’ देने के आग्रह निहित हैं। भारत सरकार ने अपने 56 पृष्ठीय हलफनामे में समलैंगिकता और ऐसे विवाह का विरोध किया है। इस मुद्दे को संसद के अधिकार-क्षेत्र में ही रहने की दलील भी दी गई है। संसद इन संबंधों की सामाजिकता, निजता, स्वाभाविकता और नैसर्गिकता पर व्यापक विमर्श करेगी और फिर कानून पारित करेगी। सरकार अदालती पीठ और इस मुद्दे की सुनवाई को संसद के अधिकार-क्षेत्र में दखल का प्रयास मान रही है। दरअसल भारतीय सभ्यता और संस्कृति में विवाह एक पवित्र संस्कार है, विपरीत लिंग के स्त्री-पुरुष का सामाजिक-मानसिक गठबंधन है तथा संतानोत्पत्ति के जरिए इस दुनिया को निरंतर बनाए रखने की सोच और कोशिश है। विकृत्तियां कई स्तर पर हो सकती हैं। ये शारीरिक, दिमागी, गर्भस्थ आदि हो सकती हैं, लेकिन अभी तक जिस व्यवस्था को समाज और कानून में मान्यता प्राप्त है, उसका उल्लंघन क्यों किया जाए? ऐसा अतिक्रमण क्यों जरूरी है, जो प्राकृतिक भी नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने 6 सितंबर, 2018 को एक महत्वपूर्ण, लगभग ऐतिहासिक, फैसले में धारा 377 (1) को ‘गैर आपराधिक’ घोषित किया था, जिसमें समलैंगिक संबंधों को ‘अप्राकृतिक अपराध’ कहा गया था। जिस एलजीबीटी समुदाय ने उस फैसले को अपनी निजता, कामेच्छा, स्वाभाविकता की ऐतिहासिक जीत करार दिया था, उसमें महिला-महिला संबंध, पुरुष-पुरुष संबंध, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स, द्विलिंगी, एसेक्सुअल आदि मनोवृत्तियों के लोग, समुदाय आते हैं। इन लोगों में विपरीत लिंगी के सामाजिक आदर्शों की अनुपस्थिति होती है। भारत में यह सामाजिक समूह विशिष्ट है, जिसमें ‘हिजड़ा’ भी शामिल हैं। उन्हें ‘थर्ड जेंडर’ भी कहा जाता है। दरअसल अब प्राचीन ग्रंथों, पुराण आदि के कुछ दुर्लभ उदाहरण देकर तार्किक मांग की जा रही है कि समलैंगिक संबंधों को भी कानूनी मान्यता दी जाए, ताकि उनके प्रति समाज, कार्यस्थल, रोज़ाना की जि़न्दगी में ‘असामाजिक’ और ‘घृणित’ न समझा जाए। ‘भगवद पुराण’ में ऐसा उल्लेख बताया जाता है कि भगवान शिव ने भगवान विष्णु को मोहिनी के अवतार में देखा और उनके मिलन के फलस्वरूप भगवान अयप्पा का जन्म हुआ। शिखंडिनी और बृहन्नाला के प्रसिद्ध पात्र ‘महाभारत’ के सबसे सम्मानित ट्रांसजेंडर पात्र हैं। ‘वाल्मीकि रामायण’ में भगवान शिव के आशीर्वाद से राजा भगीरथ का जन्म उनकी दो माताओं और राजा दिलीप की विधवाओं के मिलन से हुआ था। दरअसल ये मिथकीय कहानियां हैं, आम आदमी के पास वे अलौकिक और दैवीय शक्तियां नहीं हैं, लिहाजा इनके उदाहरण भी बेमानी हैं। भारत में संविधान को ग्रहण करने के बाद भी समलैंगिक संबंधों को ‘आपराधिक कृत्य’ माना गया था। भारत में विवाह को एक पवित्र संस्थान का दर्जा प्राप्त है और स्त्री-पुरुष मिलन को ही वैधता, सामाजिकता और एक पारिवारिक ईकाई के तौर पर स्वीकृति है। हमारी दलील कुछ अजीब-सी लग सकती है, लेकिन यह ब्रह्म-सत्य है कि पशु और जानवर में भी विपरीत लिंग के प्रति प्राकृतिक आकर्षण होता है। उनमें समलैंगिक संबंधों की पूर्ण अनुपस्थिति है। बहरहाल याचिकाएं सर्वोच्च अदालत में हैं।















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