तेहरान । ईरान की संसद ने एक खास और ऐतिहसिक बिल पास किया है जिसमें अब उनकी करेंसी रियाल में चार शून्य हट जाएंगे। मतलब, 10,000 पुराने रियाल के बराबर अब एक नया रियाल होगा। ये सिर्फ नंबरों का खेल है, लेकिन इसके पीछे महंगाई, पाबंदियां और इकॉनमी की बदहाली की कहानी है। तो ईरान ऐसा कर क्यों0 रहा है? इससे क्या फायदा होगा? और क्याी इससे पहले किसी और देश ने ऐसा किया है? अगर किया है तो क्याा उसकी अर्थव्य वस्थाह में सुधार आया यह सवाल उठ रहे हैं?
बता दें ईरान की करेंसी की हालत इन दिनों खस्ता है। रियाल 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से ही जूझ रहा है, यह अब कागज से भी सस्ता हो गया है यानी एक अमेरिकी डॉलर अगर आपको खरीदना है तो 11,50,000 रियाल देना होंगे। मतलब, एक रोटी खरीदने के लिए लाखों के नोट गिनने पड़ते हैं। दूसरी बात महंगाई पिछले कई सालों से 35फीसदी से ऊपर बनी हुई है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में एक रिपोर्ट आई थी, जिससे ईरान की खस्ताई हालत को बयां किया गया था। ईरान तेल निर्यात पर निर्भर है, लेकिन अमेरिका की पाबंदियों की वजह से चीन को छोड़कर कोई उससे तेल नहीं खरीदता। वर्ल्डर बैंक कहता है कि तेल एक्स पोर्ट न होने से उसके खजाने पर भारी असर पड़ा। नतीजा महंगाई चार साल तक 40फीसदी से ऊपर रही। 1979 के बाद से ईरान में महंगाई दर 10 फीसदी से ज्या0दा ही रही है।
इस्लादमिक क्रांति के बाद बाहर से मंगाई गई चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं। इंपोर्ट ज्याबदा है और एक्सईपोर्ट कम है, इसकी वजह से करेंसी का मूल्यी गिरता जा रहा है। 2023 में तो रियाल का पतन इस कदर हुआ कि महंगाई ने इतना बुरा था कि मुद्रास्फीति ने मुद्रा अवमूल्यन को पछाड़ दिया। पाबंदियों की वजह से विदेशी मुद्रा आई नहीं, दुनिया से संबंध तनावपूर्ण हो गए। राजनीतिक अलगाव ने अर्थव्यववस्थाव का दम घोट दिया गया।
अब सवाल यह है कि शून्य हटाने से क्या होगा? ईरान की सरकारी मीडिया ने बताया कि रियाल वही रहेगा, सिर्फ करेंसी से चार शून्य हटाए दिए जाएंगे। केंद्रीय बैंक को तैयारी के लिए दो साल मिलेंगे। फिर तीन साल का बदलाव दौर होगा, जहां पुराने और नए दोनों नोट चलेंगे। 10,000 पुराना रियाल अब 1 नया रियाल बन जाएगा। इससे लेनदेन आसान हो जाएगा। बिल जमा करने में गिनती में मुश्कि ल होती थी, वो भी खत्मो हो जाएगी। अगर दूसरे देशों की बात करें तो वेनेजुएला में महंगाई चरम पर हुई तो 2018 में 5 शून्य हटाए, फिर 2021 में भी ऐसा किया लेकिन महंगाई अभी भी ऊंची ही बनी हुई है।
जिम्बाब्वे में 2000 के दशक में ऐसा किया गया था। 10 खरब डॉलर के नोट से जीरो हटाए, लेकिन व्येवस्था0 नहीं सुधरी पाई। वहीं 2005 में तुर्की ने 6 शून्य हटाए, नया लिरा लाया। विश्वसनीयता लौटी, मुद्रास्फीति नियंत्रण में आई। ब्राजील में 1994 में रियाल योजना से महंगाई रोकी। नतीजा काफी बदलाव हुआ और ब्राजील कंपटीशन कर रहा है। घाना में 2007 में सिस्टी हटाई, लेकिन विदेशी निवेश पर मिला-जुला असर रहा।
वहीं सोशल मीडिया एक शख्सद ने लिखा- ईरानी रियाल कागज से भी सस्ता है। 1 मिलियन रियाल प्रति डॉलर। सेंट्रल बैंक जीरो हटाने की योजना बना रहा। दूसरे ने तंज कसा, रियाल को बदल दो ‘ईरानी धुंध’ से। जनता का मूड कैसे बदलोगे? यह हताशा है, क्योंकि 80फीसदी लोग अब जरूरी चीजों पर ज्याधदा खर्च कर रहे हैं। उनकी खरीदने की क्षमता कम हो गई है।

















Views Today : 7823