दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए फरवरी 2025 या उससे पहले चुनाव होने की संभावनाओं को देखते हुए राजनीतिक हलचलें एवं सरगर्मियां उग्र हो गयी है। इस बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटने की तैयारी में जुट गई है। वहीं, भाजपा और कांग्रेस इस बार सत्ता में वापसी की तैयारी में जुटी है। भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव दूसरे प्रांतों की ही भांति बिना किसी मुख्यमंत्री चेहरे के लड़ने का मन बना चुकी है और केंद्र सरकार की योजनाओं को जनता के बीच रखेगी। पार्टी का मानना है कि लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से प्रभावित हो सकते हैं। दिल्ली में भाजपा के पास एक से एक मजबूत नेता हैं, लेकिन इनमें से कोई भी नेता मुख्यमंत्री के रूप में पार्टी के लिए पेश नहीं किया जा रहा है। भाजपा दिल्ली में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए नए तरीके से चुनावी तैयारियों में जुट चुकी है, वही कांग्रेस अपनी खोयी जमीन को हासिल करने के लिये जद्दोजहद करती हुई दिखाई दे रही है। निश्चित ही इस बार का दिल्ली चुनाव आक्रामक एवं संघर्षपूर्ण त्रिकोणात्मक होगा। आप, कांग्रेस एवं भाजपा की चुनावी जंग में कौन सत्ता का ताज पहनेगा, यह भविष्य के गर्भ है।
दिल्ली में भाजपा के लिए यह चुनाव चुनौतीपूर्ण होने के साथ संघर्षपूर्ण भी है। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में, जहां पार्टी को शानदार प्रदर्शन की उम्मीद थी, उसे आम आदमी पार्टी से हार का सामना करना पड़ा। तब भाजपा को दिल्ली में मुख्यमंत्री का चेहरा प्रस्तुत करने से कोई बड़ा लाभ नहीं हुआ। इसके बजाए, भाजपा अब चुनावी रणनीतियों में बदलाव कर रही है और अपनी शक्ति को पार्टी संगठन और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उनकी लोककल्याणकारी योजनाओं के बल पर मजबूत करने का प्रयास कर रही है। यही कारण है कि दिल्ली भाजपा आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में केंद्र सरकार के काम और योजनाओं को जनता के बीच रखेगी। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि दिल्ली के लोग इससे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं, खासकर जब बात विकास, सुरक्षा, चिकित्सा और शिक्षा जैसे मुद्दों की हो। अगर भाजपा बिना किसी प्रमुख चेहरे के चुनाव लड़ती है तो यह असमंजस की स्थिति बनने की संभावनाएं तो पैदा कर ही सकती हैं। दूसरी ओर, यह फैसला एक रणनीतिक कदम हो सकता है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिष्ठा का इस्तेमाल करके अन्य प्रांतों की भांति दिल्ली में भी चमत्कार घटित हो सकता है।
भाजपा ने यह भी तय किया है कि दिल्ली की जनता को बताया जाएगा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उनके साथ वादाखिलाफी की है, वे बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और सड़कों की स्थिति में सुधार का वादा करके उन्हें जर्जर करते रहे हैं। भाजपा का मानना है कि मोदी सरकार की योजनाएं देशभर में सफलता प्राप्त कर रही हैं और इन्हें दिल्ली में लागू किया जाएगा। भाजपा को दिल्ली में हमेशा मिडिल और हाई मिडिल क्लास के लोगों की पार्टी माना जाता है। इसमें व्यापारिक समुदाय इसके कट्टर समर्थक हैं। लेकिन इस बार निचले तबको एवं गरीब लोगों के बीच उसे प्रभावी प्रयास करने होंगे। यह तो दिखता हुआ सच है कि दिल्ली में आप शासन में विकास अवरूद्ध हुआ है, पर्यावरण की समस्या उग्रतर हुई है, आप नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे एवं उनके नेता जेल यात्राएं की है। ऐसे अनेक गंभीर आरोपों के साथ भाजपा आप और उसके नेताओं पर आक्रमक होकर चुनावी परिदृश्यों को बदल सकती है।
निश्चित ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जमीन अभी भी मजबूत है। इसीलिये 2025 के चुनाव कांग्रेस एवं भाजपा के लिये चुनौतीपूर्ण होने वाले है। 2020 में हुआ विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 62 सीटें जीती थीं। वहीं भाजपा को महज 8 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस का लगातार दूसरी बार दिल्ली से सफाया हो गया था। इस बार के चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। उसके बाद आतिशी मार्लेना राज्य की मुख्यमंत्री बनी हैं। आप नेताओं ने चुनाव अभियान प्रारंभ कर दिया है। दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने का फैसला किया है। आप ने पिछले दो विधानसभा चुनावों में भारी अंतर से जीत हासिल की है। आप के आंतरिक सर्वेक्षण बताते हैं कि आप इस चुनाव में भी आसानी से जीत की ओर बढ़ रही हैं। इन स्थितियों में आप क्यों कांग्रेस या अन्य पार्टी के साथ गठबंधन करें? आप अभी भी निम्न-मध्यम वर्ग और झुग्गी-झोपड़ियों वाले इलाकों में काफी लोकप्रिय है।
आप का वोट शेयर पहले की तुलना में बढ़ा है और कांग्रेस कमजोर हुई है। हालांकि, 2013 में अपने पहले चुनाव के बाद से आप का वोट शेयर लगातार बढ़ता रहा। जबकि पिछले दशक में कांग्रेस को वोट देने वालों की संख्या में काफी कमी आई है। आप ने 2013 में अपने आश्चर्यजनक प्रदर्शन के साथ, कुल मतदान का 29 प्रतिशत वोट प्राप्त किया था। पार्टी को 70 में से 28 सीटों पर जीत मिली थी। आप ने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई थी। इससे कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 24.5 प्रतिशत और सिर्फ आठ सीटों के साथ तीसरे स्थान पर आ गई थी। इसके बाद 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर क्रमशः 9.7 प्रतिशत और 4.3 प्रतिशत तक गिर गया। वहीं, आप ने 54.6 प्रतिशत और 53.6 प्रतिशत वोट शेयर के साथ भारी जनादेश हासिल किया। लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एवं आप के बीच गठबंधन न होने का फायदा भाजपा को मिलता हुआ दिख रहा है। असल में आप के वोट कांग्रेस ही काटेगी।
















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