प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। भाद्रपद कृष्ण एकादशी का नाम अजा है। यह सब प्रकार के समस्त पापों का नाश करने वाली है। यह सब प्रकार के समस्त पापों का नाश करने वाली है। जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश की पूजा करता है उसको वैकुंठ की प्राप्ति अवश्य होती है।
कथा- प्राचीनकाल में हरिशचंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। उसने किसी कर्म के वशीभूत होकर अपना सारा राज्य व धन त्याग दिया, साथ ही अपनी स्त्री, पुत्र तथा स्वयं को बेच दिया। वह राजा चांडाल का दास बनकर सत्य को धारण करता हुआ मृतकों का वस्त्र ग्रहण करता रहा मगर किसी प्रकार से सत्य से विचलित नहीं हुआ। कई बार राजा चिंता के समुद्र में डूबकर अपने मन में विचार करने लगता कि मैं कहां जाऊं, क्या करूं, जिससे मेरा उद्धार हो।
इस प्रकार राजा को कई वर्ष बीत गए। एक दिन राजा इसी चिंता में बैठा हुआ था कि गौतम ऋषि आ गए। राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और अपनी सारी दुःखभरी कहानी कह सुनाई। यह बात सुनकर गौतम ऋषि कहने लगे कि राजन तुम्हारे भाग्य से आज से सात दिन बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा नाम की एकादशी आएगी, तुम विधिपूर्वक उसका व्रत करो।
गौतम ऋषि ने कहा कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे। इस प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय अंतर्ध्यान हो गए। राजा ने उनके कथनानुसार एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत व जागरण किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए। स्वर्ग से बाजे बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा। व्रत के प्रभाव से राजा को पुनः राज्य मिल गया। अंत में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग को गया।
अजा एकादशी अक्षय पुण्य देने वाली है। भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष में आने वाली इस एकादशी के प्रताप से मनुष्य कायिक, वाचिक और मानसिक पाप से मुक्त हो जाता है। समस्त उपवासों में अजा एकादशी का व्रत श्रेष्ठ बताया गया है।
इस एकादशी व्रत को करने वाले को अपने चित्त, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता है। इस अर्थ में यह व्रत व्यक्ति को अर्थ और काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह व्रत प्राचीन समय से यथावत चला आ रहा है। इस एकादशी के फलस्वरूप अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है, मन निर्मल और पवित्र होता है। इस व्रत को करते हुए व्रती को चाहिए कि वह भगवान विष्णु का विधि-विधान से पूजन करें। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। रात को भगवत भजन में जागरण करें और द्वादशी के दिन ब्राह्णों को भोजन कराकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। विधिपूर्वक यह व्रत करने वाले वैकुंठ धाम जाते हैं।
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