-श्री श्री रविशंकर-
योग की ही अवस्था है ध्यान, जो हमें बहुत से लाभ देता है। पहला लाभ, शांति और प्रसन्नता लाता है। दूसरा, यह सर्वस्व प्रेम का भाव लाता है। तीसरा, सृजनशक्ति और अंतरदृष्टि जगाता है। बच्चे हर किसी को आकर्षित करते हैं, क्योंकि उनमें एक विशेष शुद्धता होती है, उत्साह होता है। बड़े होकर हम उस ऊर्जा से, उस उत्साह से अलग हो जाते हैं, जिसके साथ हम जन्मे थे।
कई बार हमें बिना कारण कुछ लोगों के प्रति घृणा होती है, तो कई बार बिना किसी स्पष्ट कारण के हम कुछ लोगों की ओर आकर्षित होते हैं? यह इसलिए होता है, क्योंकि जब हमारा मन स्वच्छंद और शुद्ध होता है तो हमारे भीतर से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है, वहीं इनके अभाव में नकारात्मक ऊर्जा निकलती है।
हमें यह सीखना है कि कैसे नकारात्मकता, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ, कुंठा, उदासीनता आदि को दूर कर अपनी ऊर्जा को सकारात्मकता में बदलें। योग में सांस लेने की प्रक्रिया से इसमें सहायता मिलती है। सांस की प्रक्रियाओं और ध्यान से हम नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा बना सकते हैं।
जब हम सकारात्मक और प्रसन्न होते हैं तो अपने आसपास भी प्रसन्नता फैलाते हैं। जब हम अधिक सृजनात्मक, अंतरज्ञानी होना चाहते हैं, तब जीवन को व्यापक दृष्टिकोण से देखने के लिए थोड़ा अधिक प्रयत्न आवश्यक है। इसके लिए ध्यान का समय बढ़ाना होगा।