-संजय गोस्वामी-
दिल्ली शहर में शहरीकरण विकास के लिये, शहरी नियोजन तंत्र भी उसी गति से विकसित नहीं हुआ है जिस गति से शहरीकरण और तकनीकी प्रगति का विकास हो रहा है। अनियोजित विकास और जलवायु परिवर्तन शहरी बाढ़ सहित कई आपदाकारी घटनाओं का कारण बन रहे हैं, जिन पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। हैदराबाद में आई बाढ़ में हज़ारों घर जलमग्न हो गए थे। चेन्नई की बाढ़ इस बात की याद दिलाती है कि शहरीकरण किस तेज़ी से शहरों को शहरी बाढ़ के लिये प्रवण बनाता जा रहा है। वर्तमान में वर्ष 2022 में सितंबर में बंगलूरु में मानसून मौसम में आई ऐसी ही बाढ़ की कई घटनाओं का साक्षी बना है। शहरी बाढ़ एक निर्मित परिवेश में, विशेष रूप से शहरों जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में, भूमि या संपत्ति के जलमग्न होने की स्थिति है जो प्रायः तब उत्पन्न होती है जब वर्षा के कारण जलजमाव वहाँ की जल निकासी प्रणालियों की क्षमता पर भारी पड़ता है। ग्रामीण बाढ़, एक समतल या निचले क्षेत्र में भारी बारिश के कारण उत्पन्न, के विपरीत शहरी बाढ़ न केवल उच्च वर्षा के कारण बल्कि ऐसे अनियोजित शहरीकरण के कारण उत्पन्न होती है जो बाढ़ की चरमता को 1.8 से बढ़ाकर 8 गुना कर देता है, बाढ़ की मात्रा को 6 गुना तक बढ़ा देता है।
दिल्ली में निकासी चैनलों का अतिक्रमण:हुआ जो शहरों और कस्बों में भूमि के बढ़ते मूल्यों और मुख्य शहर में भूमि की कमी के कारण नए विकास कार्य निचले इलाकों में हो रहे हैं, जिनके लिये आमतौर पर झीलों, आर्द्रभूमि तथा नदी के तटवर्ती इलाकों आदि का अतिक्रमण किया जा रहा है। आदर्शत: होना यह चाहिये था कि प्राकृतिक अपवाहिकाओं को चौड़ा किया जाता जैसे बढ़ते हुए यातायात के साथ सड़क चौड़ीकरण किया जाता है, ताकि तूफानी जल के उच्च प्रवाह को समायोजित किया जा सके। लेकिन वस्तुस्थिति इसके विपरीत है जहाँ इन प्राकृतिक अपवाह तंत्रों को चौड़ा करने के बजाय बड़े पैमाने पर इनका अतिक्रमण कर लिया गया है। परिणामस्वरूप उनकी अपवाह क्षमता कम हो गई है, जिससे बाढ़ की स्थिति बनती है। शहरी स्तर पर स्थलाकृति और बाढ़ के ऐतिहासिक आँकड़ों के विश्लेषण के माध्यम से संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है। शहर और ग्राम के स्तर पर सभी जल निकायों और आर्द्रभूमि का रिकॉर्ड बनाए रखना बाढ़ से बचने, उसका सामना कर सकने और लचीलापन पाने के लिये समान रूप से महत्त्वपूर्ण होगा।
प्रभावी वाटर-शेड प्रबंधन: फ्लड-वाल का निर्माण, बाढ़ प्रवण नदी घाटियों के किनारे ऊँचे प्लेटफॉर्म बनाना, जल निकासी चैनलों की समय-समय पर सफाई और उन्हें गहरा करना आदि कुछ ऐसे उपाय हैं जिन्हें केवल शहरी क्षेत्रों के बजाय समग्र नदी बेसिन में अपनाया जाना चाहिये। सड़कों के किनारे बायोस्वेल बनाए जा सकते हैं ताकि सड़कों से बारिश का पानी उनकी ओर बहे और नीचे चला जाए। इसके साथ ही, जल निकायों के जलग्रहण क्षेत्रों को अच्छी तरह से बनाए रखा जाना चाहिये और इन्हें अतिक्रमण एवं प्रदूषण से मुक्त होना चाहिये, इस प्रकार जल के मार्ग को अवरोधों से मुक्त रखा जाना चाहिये।