मथुरा। हाल में चल रहे लोकसभा के चुनाव में जिस उम्मीद के साथ भाजपा ने रालोद से दोस्ती का हाथ ही नही बढ़ाया था बल्कि उससे चुनावी समझौता भी किया था उस उम्मीद पर पानी फिर सकता है। इसमें कोई शक नही है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में रालोद का अच्छा प्रभाव है क्योंकि इनमें जाटों की संख्या अधिक है तथा जाट चौधरी चरण सिंह का भक्त है किंतु जिस प्रकार जयंत चौधरी दल बदलते रहे हैं इस बार जाटों ने उसे अन्यथा लिया है। उनका कहना है कि वे जयंत के गुलाम नही है और ना ही बंधुआ मजदूर हैं कि जिधर वे चाहे उधर ही उनके पीछे सभी जाट चले जांय। तीसरे चरण के चुनाव में हाथरस, आगरा, फतेहपुर सीकरी, फिरोजाबाद एवं मैनपुरी के प्रत्याशियों का भाग्य 7 मई को ईवीएम में कैद हो जाएगा।
मशहूर अधिवक्ता हाथरस निवासी पार्थ गौतम ने बताया कि हाथरस का जाट जयंत से नाराज है तथा कुछ जाट तो उन्हे पलटूराम तक कहने लगे हैं। उनका कहना था कि जिस प्रकार से जयंत बार बार दल बदलते रहे हैं उससे नाराज होकर वे किसी अन्य दल को वोट दे जैसा कि अधिकांश जाटों ने मथुरा में किया। उनका कहना था कि एक ओर जाटों की जयन्त से नाराजगी दिखाई पड़ती है दूसरी ओर भाजपा मे मौजूद जाटों ने भी जयन्त के भाजपा में शामिल होने को अन्यथा लिया है तीसरी बात यह है कि अन्दरखाने से भाजपाई भी इस दोस्ती को हजम नही कर पा रहे हैं तथा मथुरा में तो भाजपाइयों ने रालोद के लोगों को भाजपा प्रत्याशी हेमामालिनी की दैनिक सभाओं की जानकारी तक नही दी थी। अधिवक्ता गौतम के अनुसार जिस प्रकार से जयन्त की सादाबाद की सभा का संदेश गया उसे देखकर जयंत पत्रकारों से कन्नी काट गए जब कि वे पत्रकारों से बात करने को बहुत अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। जयन्त से जाटों की नाराजगी मथुरा में तो कांग्रेस के लिए फायदेमन्द रही क्योकि अधिकांश जाटों ने जयंत को सबक सिखाने के लिए या तो मतदान का बहिस्कार किया या फिर भाजपा को वोट देने के बजाय कांग्रेस को वोट तब भी दिया जब कि कांग्रेस का प्रत्याशी उनके क्षेत्र में नही गया।
आगरा निवासी शिक्षक संजय शर्मा ने बताया कि जाटों की नाराजगी वहां पर भी बरकरार है यही कारण प्रत्याशी अभी तक जयंत को बुलाने से बचते रहे हैं। फतेहपुर सीकरी में जिस प्रकार विधायक बाबूलाल ने भाजपा के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाया और अपने बेटे को भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा तथा काफी मान मनोव्वल के बावजूद वे नही माने । उनका बेटा रामेश्वर भाजपा प्रत्याशी के लिए परेशानी पैदा कर रहा है। अगर इस शिक्षक की माने तो जाटों की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है। आगरा के देहाती क्षेत्र के रालोद कार्यकर्ता बदन सिंह ने भी कहा कि इस बार जाट जयंत से नाराज है तथा यह भाजपा के लिए घातक हो सकता है। इस प्रकार आगरा की दो सीटें एवं हाथरस की एक सीट 7 मई के चुनाव में भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा रही हैं।
इस चुनाव के पहले जाट रालोद के प्रति समर्पित रहे हैं । भाजपा ने भी इसी प्रभाव को देखकर रालोद जैसे छोटे दल से चुनावी समझौता किया था किंतु यह समझौता धरातल पर आते आते उल्टा पड़ सकता है। इसका प्रमुख कारण रालोद मुखिया का बार बार दल बदलना रहा है। इतिहास साक्षी है कि मथुरा लोकसभा से अजित सिंह की बहन ज्ञानवती ने लोकसभा जाने का प्रयास किया किंतु वह सफल नही हो पाया। मथुरा की सीट से जयंत केवल एक बार भाजपा से मिलकर लोकसभा का चुनाव जीते थे बाद में उन्होंने कांग्रेस से मिलकर जब चुनाव लड़ा तो वे हार गए थे। सपा से उनकी दोस्ती कोई खास गुल खिला न सकी थी।
इतिहास साक्षी है कि जब जयंत ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस से चुनावी समझौता किया था तो कुछ जाट भाजपा में ही रह गए थे।अब रालोद के पुनः भाजपा से दोस्ती करने से जाटों को एक बहुत बड़ा वर्ग जयंत से नाराज हो गया है। पार्टी नेतृत्व ने भले ही ऊपर ही ऊपर रालोद से समझौता कर लिया हो पर जिलास्तर पर भाजपाई इसे पचा नही पा रहे । रालोद के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष कुंवर नरेन्द्र सिंह ने कहा कि रालोद का भाजपा से चुनावी समझौता होेने के कारण उन्होंने कई बार हेमा मालिनी की स्थानीय सभाओं में जाने का विचार किया किंतु भाजपा की ओर से उन्हें कोई सूचना न देने के कारण वे चुनावी सभाओं में नही जा सके। भाजपा की ओर से हेमा के प्रोग्राम को न तो भाजपा के सोशल मीडिया ग्रुप में डाला गया और ना ही चुनाव का अलग ग्रुप बनाकर डाला गया। उनका दावा है कि भाजपा द्वारा यदि उन्हें तवज्जो दी जाती तो संभवतः ठाकुरों का बहुत बड़ा वर्ग हेमा के पक्ष में खड़ा हो जाता। नरेन्द्र सिंह हेमामालिनी के खिलाफ 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ चुके है उस समय वे हेमा से पराजित भले हो गए थे किंतु उन्हें लगभग पौने चार लाख वोट मिले थे।
एक पूर्व विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस बार हेमा की जीत मोदी की छवि और योगी के प्रयास तथा हेमा की व्यक्तिगत छवि के आधार पर होगी। हेमा के साथ अच्छाई यह है कि उन पर अभी तक एक पैसे की बेईमानी करने का दाग नही लगा है। उनके द्वारा कई योजनाएं लाई गईं जिनकी प्रशंसा योगी ने सार्वजनित सभाओं तक में की किन्तु योगी ने जिस प्रकार दो सभाएं करके वातावरण को भाजपा के पक्ष में बनाया था यदि पार्टी का जिले का नेतृत्व उसी प्रकार से काम करता तो इस बार भी हेमा की जीत कम से कम पांच लाख वोटों से होती। इस नेता का यह भी कहना था कि जिस प्रकार विधायकों के क्षेत्र में विकास की मांग कर रहे ग्रामीणों ने मतदान का बहिस्कार किया तथा बाद में कुछ ने आधे अधूरे मन से चुनाव में भाग लिया उससे यह साबित होता है कि विधायक केवल मोदी योगी की छवि के भरोसे हैं तथा अपने क्षेत्र में काम नही कर रहे हैं। उनका कहना था कि खबर तो यह भी है कि जाटों ने मथुरा में जयंत से नाराज होकर कांग्रेस को वोट दिया क्योंकि बसपा को तथा भाजपा वोट वे देना नही चाहते थे । कुल मिलाकर भाजपा ने जिस योजना के साथ जयंन्त से दोस्ती का हाथ बढ़ाया था वह आगरा, फतेहपुर सीकरी या हाथरस में यदि पूरी हो जाय तो इसे चमत्कार कहा जाएगा।