-कांतिलाल मांडोत-
न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका लोकतंत्र के तीन स्तम्भ है। जिसमे विधायिका कानून बनाती है और कार्यपालिका इन कानूनों को लागू करती है और न्यायपालिका उन कानूनों की व्यख्या करते हुए विवादों का निपटारा करते है। लेकिन तीन पैर वाला पलंग ठहर नही सकता है। और चौथे पैर का सहयोग पत्रकारिता करती है। लोकतंत्र के चार मजबूत स्तम्भ है। जिस पर इस देश का सुचारू रूप से संचालन हो रहा है। चारो एक दूसरे से स्वतंत्र होते है। देश मे मजबूत और स्थिर व्यवस्था के लिए सभी का तालमेल जरूरी है। इसमें एक संस्था का अभाव लोकतांत्रिक प्रणाली को प्रभावित करता है। संविधान की रक्षा करना, कानून को बनाये रखना, नागरिकों के अधिकारो की रक्षा करना और विवादों का निपटारा करना माननीय न्यायालय के अधिन है। हार्वर्ड समेत कई कॉलेजों में स्टडी के दरमियान पाया गया है कि भारतीय न्यायधीश दुनिया मे सबसे ज्यादा निष्पक्ष है। भारत की न्यायपालिका को मिले गौरव के लिए भारत की साख दुगुनी हो गई है। स्टडी में पाया गया है कि देश की न्यायपालिका धर्म, जातिऔर लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नही करती है। भारतीय न्याय व्यवस्था में अपराध करने वाले के साथ साथ अपराधी को अपराध हेतु प्रेरित करने वाले के लिए भी सजा का प्रावधान है। न्यायपालिका जब तक किसी तथ्य को प्रयोग और परिणाम की कसौटी पर नही कस लेती, तब तक उसे सत्य नही मानती है। न्यायाधीश कठधरे में खड़े व्यक्ति के खिलाफ सबूत नही मिलते, तब तक उसे अपराधी नही मानती है। इस देश और न्यायपालिका की खूबसूरती है कि दोषी भले ही छूट जाए, लेकिन निर्दोष व्यक्ति को सजा नही होनी चाहिए। हमारे बनाये सिद्धांत खंडित हो सकते है, लेकिन सत्य का खण्डन त्रिकाल में नही हो सकता। इस देश मे कानून बालक को सजा नही देता है। क्योकि उसके मन मे वह बात नही होती जो वयस्क के मन मे होती है। बालक परिणाम को नही जानता, वयस्क जानता है। कानून का उल्लंघन करने वालो को सजा मिलती है। न्यायपालिका सत्य पर आधारित फैसला सुनाती है। देश की जनता किसी व्यक्ति, समाज या परिवार पर भरोसा शायद नही करता होगा, लेकिन न्यायपालिका पर आज भी लोगो को भरोसा है। दो व्यक्तियों के बीच झगडा, वादविवाद बढ़ने पर न्याय नही मिलता है तो वो पीड़ित यह कहते सुना है कि आपको मैं कोर्ट में देख लूंगा। यह भारत की न्यायपालिका की सत्यनिष्ठा की पहचान है। न्यायपालिका कर्तव्य का पालन समुचित रूप से कर रही है। धर्म और जातियों को पीछे छोड़कर अपराध करने वाले लोगो को सजा सुनाती है। फिर वह किसी भी धर्म के लोग क्यो नही है। न्यायधीश एविडेन्स के आधार पर सजा देते है। न्यायधीश कर्तव्यों के परिपालन के लिए आज भी गतिशील है। कई केस ऐसे भी होते है, जिसमे न्याय समय पर नही मिलने पर असंतुष्ट होते है। असंतोष न्यायप्रणाली की निष्पक्षता पर भी हो सकता है।
खासकर, जब न्याय में देरी हो जाती है। लेकिन कही ऐसा सुनने में नही आता है कि न्यायपालिका या न्यायमूर्ति जुठ का सहारा लेते है। देश की न्यायप्रणाली जानती है कि कर्तव्य-पालन में जीवन का उत्थान है तो कर्तव्य से च्युत होने में जीवन का पतन है। हार्वर्ड में शोधकर्ताओं ने 7.7करोड़ का डेटा तैयार किया गया। जिसमे 2010 से 2018 तक 50 लाख आपराधिक मामले जांचे गए। सभी केस भारतीय निचली कोर्ट के थे, जिन्हें के-कोर्ट्स प्लेटफार्म से निकाला। नतीजों में साफ हुआ कि भारत मे महिला जज ज्यादा राहत देती है। । मुस्लिम प्रतिवादी मुस्लिम न्यायधीशों से कोई राहत नही पाते और जाति आधारित उनमें कोई भेदभाव नही है। अमेरिका और चीन के न्यायप्रणाली में बहुत पक्षपात के केस दिखाई दिए। उन्नति, स्थिरता, संतोष, दृढ़ भावना को समझने वाले भारत को धर्म का पुष्ट मिलता है। यह धर्म का द्वीप है। इसलिए भारत मे न्याय की अपेक्षा ज्यादा है। न्यायालय में आदमी अपने आप को संतोषप्रद मानता है। भारत मे धार्मिक प्रवृत्ति और सारा भारत धार्मिक धुरी पर टिका हुआ है। जिससे नैतिकता, ईमानदारी और सत्यनिष्ठा का हर समय परिपालन करने वाले लोगो के सम्पर्क और संसर्ग में आने की वजह से निष्पक्ष न्याय मिलता है। यही बड़ा कारण रहा है। धर्म की महिला अदभुत है। धर्म के बिना जीवन पंगु है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीश द्वारा भी गलती या गलत निर्णय से अन्याय हो सकता है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई भी न्यायाधीश यह दावा नहीं कर सकता कि उसने कभी गलत आदेश नहीं सुनाया है। हालाँकि, किसी भी जज के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई केवल गलत आदेश देने के आधार पर नहीं की जानी चाहिए, जब तक कि बाहरी प्रभाव के सबूत न हों। गलत आदेश से भी अन्याय हो सकता है, और इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे न्यायाधीश का पक्षपाती होना, सबूतों की ठीक से जांच न होना, या बाहरी दबाव का होना भी कारण हो सकता है। देश मे यह दावा करते हुए हम गली मोहल्ले में सुनते है कि इसको तो हम कोर्ट में घसीटेंगे। मक्का और मदीना पर आस्था रखने वाले भारतीय मुसलमान भी माननीय न्यायालय का भरोसा करते है। देश मे कई देशों में न्यायिक पक्षपात हुआ है। भारत मे निष्पक्ष न्याय के लिए न्यायपालिका का नही, न्यायमूर्ति और देश के लिए बड़ी गौरव की बात है। लोगो को न्यायपालिका पर अब ज्यादा भरोसा होगा। जो नास्तिकता लिए हुए हर समय न्यायालय की निंदा करने वाले है, जब उपरोक्त न्यायालय और जज के बारे में निष्पक्ष जांच का अवॉर्ड मिला है, तब सभी को भरोसा करना ही है। यह भारत के लिए गौरव दिलाने की बात है। भारतीय संस्कृति का आदर्श सत्यम, शिवम और सुंदरम है। त्याग भारतीय दर्शन का अभिन्न अंग है।

















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